कुछ और जियादा, इक दूजे पे यकीन किया जाए
बेहतर तो है ये ज़िन्दगी,और बेहतरीन किया जाए
अरसे गुज़र गए है, तुझे यूं बैठ बेफ़िकरी से सुने
उन अहसासों में ख़ुद को,और तल्लीन किया जाए
कुछ रंग तू भी समेट ले, कुछ रंग में ढूंढ लाऊं
बेरंग ये मखमल की चादर,और रंगीन किया जाए
तू मुझको समझ ले फ़क़त, मैं तुमको समझ जाऊं
इस कदर इस हसीं संग को, और संगीन किया जाए
दोबारा ना मिलती कमबख्त, ज़िन्दगी ये 'जीत'
जो भी है मुट्ठी मे, उस वक्त को बेहतरीन किया जाए
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