शर्द मौसम के ये नजारे, मैं जीता था तेरे सहारे, तू दरिया के उस किनारे, मैं दरिया के इस किनारे। मोहब्बत का ये कशमकश जो वो न समझी, चलती रही कभी इसके सहारे कभी उसके सहारे।।
तस्वीर तेरा मैं कहाँ छुपा लूं तुझे मैं अपनी बाहों में लिटा लूं ये मोहब्बत जीने नहीं देती मुझे कैसे मैं तुझे अपने पास बुला लूं परछाई है तू मेरी, मन करता है बस तुझे मैं अपने सीने में दबा लूं।
मेरी याद ने मुझको बहुत कुछ सिखा दिया है। चलो ना चलो कुदरत ने बहुत कुछ दिया है।। मैं उस बेहतरी के इंतजार में कभी नहीं रहता क्योंकि मेरी मेहनत ने मुझे जीना सिखा दिया है।।
मेरी बेफिक्री कहाँ है तू बरसो तेरा इंतजार किया हूँ आ जा मेरे आशियाने में अर्सो से तेरा दीदार ना किया हूँ। सहर दर सहर समय बीत गया कितनों से तेरा जिक्र किया हूँ आ जा तो सबको दिखा दूं कि मोहब्बत मैं बेतहासा किया हूँ।।
जीना भी तो किसके लिए जीना मरना तो किसके लिए मरना न सफर का पता न मंजिल का पता चलना भी तो किसके लिए चलना ये मेरी मोहब्बत कहाँ है तू आ तो सही फिर तेरे लिए जीना और तेरे लिए मरना
चलते चलते यूँ ही रुक जाता हूँ , बेवफा करने वालों को भूल जाता हूँ । जो प्यार के दो शब्द बोल दे मुझसे, उसके लिए मर जाने को तैयार हो जाता हूँ।। चलते चलते यूँ ही रुक जाता हूँ । बड़ी बेबाक है ये दुनिया साहब। जीने वाले के लिए जी जाता हूँ।। चलते चलते यूँ ही रुक जाता हूँ।।।