दूर उफ़क़ पर ढलता हुआ सूरजये शाम नहीं गुज़री यादों की रंगोली है.. -
दूर उफ़क़ पर ढलता हुआ सूरजये शाम नहीं गुज़री यादों की रंगोली है..
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साथ चलते हैं उजालों में सहारा बनकर..सांझ ढल जाए अगर हाथ छुड़ा लेते हैं सब -
साथ चलते हैं उजालों में सहारा बनकर..सांझ ढल जाए अगर हाथ छुड़ा लेते हैं सब
माज़ी के गुलशन से कुछ चुन रक्खे हैं यादों के गुलउनकी खुशबू से मेरी रातें मु'अत्तर होती हैं -
माज़ी के गुलशन से कुछ चुन रक्खे हैं यादों के गुलउनकी खुशबू से मेरी रातें मु'अत्तर होती हैं
अवसर अमृत पर्व का, राष्ट्र का हो संकल्प।विश्व गुरु भारत बने, होवे कायाकल्प ।। -
अवसर अमृत पर्व का, राष्ट्र का हो संकल्प।विश्व गुरु भारत बने, होवे कायाकल्प ।।
वो दराज़ कौनसी थी ..हो तुम्हे खबर तो कहनाजहां रख के दिल के सारे .. मैं ख़याल भूल बैठा -
वो दराज़ कौनसी थी ..हो तुम्हे खबर तो कहनाजहां रख के दिल के सारे .. मैं ख़याल भूल बैठा
ज़िन्दगी में कई जोड़े थे राब्तेवक़्त के साथ सारे बदलते गए -
ज़िन्दगी में कई जोड़े थे राब्तेवक़्त के साथ सारे बदलते गए
एक चेहरे में छुपे जैसे हज़ारों चेहरेज़िन्दगी तू ही बता कैसे यकीं हो तुझ पर.. -
एक चेहरे में छुपे जैसे हज़ारों चेहरेज़िन्दगी तू ही बता कैसे यकीं हो तुझ पर..
देता दिखाई जलवा तेरा शाख-ओ-बर्ग परतू ही सबब ख़िज़ाँ का है, तुझसे बहार है.. -
देता दिखाई जलवा तेरा शाख-ओ-बर्ग परतू ही सबब ख़िज़ाँ का है, तुझसे बहार है..
कुनबा बना है गिरगिटों को जोड-जाड़ कर।निकला है शेर आज जो फिर से दहाड़ कर।बेशर्म हो के आये हैं नेता जी लौट केजो कल गए थे देश की हालत बिगाड़ कर।माँगें हिसाब उनसे जो हम साठ साल कावो चल दिए हैं देखिये हाथों को झाड़ कर।आएँगे वोट माँगने वो दर पे जब तेरेरस्ता दिखाना है तुझे उनको लताड़ कर।बेकार की हैं कसरतें बेकार कशमकशआएगा आने वाला तो सबको पछाड़ कर।घुस जाए अपने घर में न ये जंगली भेड़ियेभारत तू राष्ट्रवाद की मजबूत बाड़ कर। -
कुनबा बना है गिरगिटों को जोड-जाड़ कर।निकला है शेर आज जो फिर से दहाड़ कर।बेशर्म हो के आये हैं नेता जी लौट केजो कल गए थे देश की हालत बिगाड़ कर।माँगें हिसाब उनसे जो हम साठ साल कावो चल दिए हैं देखिये हाथों को झाड़ कर।आएँगे वोट माँगने वो दर पे जब तेरेरस्ता दिखाना है तुझे उनको लताड़ कर।बेकार की हैं कसरतें बेकार कशमकशआएगा आने वाला तो सबको पछाड़ कर।घुस जाए अपने घर में न ये जंगली भेड़ियेभारत तू राष्ट्रवाद की मजबूत बाड़ कर।
रवाँ रवाँ है सुब्ह में, ढले हर एक शाम कोलगी मुझे मिज़ाज-ए-आफ़ताब सी है ज़िन्दगी.. -
रवाँ रवाँ है सुब्ह में, ढले हर एक शाम कोलगी मुझे मिज़ाज-ए-आफ़ताब सी है ज़िन्दगी..