भारत : एक सपना
मेरा एकमात्र सपना है।
हाँ वही, भारत देश अपना है।
एक ऐसा राष्ट्र जहाँ कोई ना पराया,
जो भी है सब अपना है।
'अपना' अपनत्व की भावना से बढ़कर स्वामित्व का अधिकार ना बने।
कड़वाहट के मोती सबके मन में रहे किन्तु संवेदना सोच से धारदार ना बने।
मेरा सपना है एक ऐसे भारत का,
जहाँ धर्म सबका ईमान बने।
लोग यहाँ इंसान बने,
हिन्दू, सिख, ईसाई और ना मुसलमान बने।
एक ही माँ के हम सब बेटे-बेटी,
फिर क्यों लड़ते झगड़ते है?
हर कोई खाये हक़ की,
फिर क्यों एक-दूजे का कंठ पकड़ते है?
सोच, नियत, कर्म ही है ख़ुदा,
क्यों ना हम ये समझते है?
मंदिर, मस्ज़िद या हो गिरजाघर,
ईबादत ही तो सभी करते है!
उन्नत देश वही है जहाँ के वासी आपस में मिलकर रहते है।
हां सोच अलग हो ये संभव है।
सोच सही हो ये जरूरी है।
अधिकारों को पाने की ठानी है तो ये भी सुन लो,
कर्तव्य भी जरूरी है।
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