मैं शाम के साथ ही गुज़र जाऊंगी।
शायद फिर कभी ना लौट पाऊँगी।
याद जरूर आएगी मेरी,
कभी बचपन, कभी खेल, कभी प्रकृति के रूप में।
पर याद रखना,
यादें बीती हुयी बातें हुआ करती है।
अनमोल सौगातें हुआ करती है।
जिनका भविष्य के समंदर से कोई ताल्लुक़ ना हो,
ऐसी बरसातें हुआ करती है।
यादें ...
चैन, सुकूं, ख़ुशी, नाम कई है मेरे।
बिखरे हुए अल्फ़ाज़ हमेशा रहते है घेरे।
क्या पूछना जाकर अब उन लम्हों को,
जिन्होंने मनके मेरे नाम के थे फेरे।
अटके, भटके फिरते है लोग मेरी तलाश में।
मैं कभी मिल भी जाती हूँ उन्हें,
पर अलग लिबास में।
बैठे रहते है वो मेरे आने की आस में।
और मैं...
शाम के साथ ही वापस लौट जाती हूँ।
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