इक उदासी है थकी-थकी
इक ख़्याल है तरो-ताजा सा,
कल तेरा नाम होंठों पे आ गया
मैं जाने क्यूँ सारी रात जागा था,
पलकों पे अभी भी हैं तेरी निशानियां
इक आँसु अभी भी है आधा सा,
यूँ लगे आजकल ज़िन्दगी
जैसे गाँठ में उलझा धागा सा,
ना चाहकर भी तुझे जीना ही है
ज़िन्दगी ऐसा तुझसे तो कोई ना वादा था,
जाने यह लंबे मोड़ कहाँ से आ गये
"अशोक" तेरा सफऱ तो सीधा-साधा था..!
-