हम दोनो जिंदगी की फटी कमीज़ पहने
एक ही शरीर हैं! जो बस जी रहे हैं
समय के शहर में, उदासियों की नदी बहे जा रही है
और यादों के जंगल
उम्मीदों की यात्राओं पर पैर पसार रहे हैं
तुम अपनी घृणा को चिल्लर की तरह जमा कर रहे हो,
मैं इन सबसे परे हटकर, कमीज को रफू करने की कोशिश कर रही हूं
और अपने आपको बाहर निकलने की भी....
मेरे लिए प्रेम ,स्मृतियों की उगी झाड़ियों में
लहूलुहान होना नही
बल्कि अगली सुबह है जो खत्म होने के बाद
शुरू होती है।
सोनिया
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