कमाल है ना ??
वो बचपन में गांव के साखरे गलियों में बेमकसद दौरना ,,
वो खुली छत पर साथ सोना ,, हँसी ठिठोली,,हर बात पे ही हँस देना ।।
पर फ़ोटो लेना याद नही रहा !!
पानीपुरी की भी फ़ोटो कहा ली थी हमने ,,
अरमान चांद को छूने की होती थी ,,
गुड्डे-गुड़ियों की शादी की तो अलग ही खुशी मनाई जाती थी 😅
बेमतलब झगड़े भी कर लेते थे।
है ना ??
दादी की कहानियां,,दादा जी से पढ़ना,
सब अब बस यादें बन चुकी हैं।
वो ट्रेन में बिना AC वाले डब्बे में बैठ कर सफर करना और वो आलू भुजिया और पराठा तो याद ही होगा ना ।।
ओह ! उनकी भी तस्वीरें नही ली हमने।
हाँ !! उस वक़्त फ़ोन के कैमरे नही दिल में तस्वीर हुआ करती थी ,,
बचपन ही अच्छा था !!
घड़ी सिर्फ पापा के पास थी ,, और वक़्त हमारे पास ।।💕
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