गज़ल
हमने मांगी थी बहार मगर खिजां ही मिली ,
ऐसे टूटे हैं पहाड़ कोई दिशा न मिली |
दामन कांटों से बचाते थे ज़ख्म फूलों ने दिये ,
ऐसी किश्ती पे है सवार जो कि टूटी निकली |
दिल को समझाते रहे वक्त गुजर जाएगा ,
किया इन्तजार वक्त की धीमी रफ्तार निकली |
फैसलें करता रहा जमाना मेरी बेबसी के ,
इसकी अदालत में मेरी फरियाद खोखली निकली |
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