गुलज़ार करके गुलशन को,यूँ गुल सा खिला दिया,
अब ऐ खुदा जो तूने मुझे,है मुझसे मिला दिया..!!
कभी हर ख्वाब मेरा टूट कर,था फिर से बिखर गया,
इकतरफा प्यार का मुझको था,ये कैसा सिला दिया..!!
बस कदम-कदम पर काँटों के,बाजार मिले मुझको,
इतना बता क्या मैंने कभी,था तुझसे गिला किया..!!
मर ही जाता गम के मारे,हाल-ऐ-दिल ऐसा था कुछ,
वो तो मेरे सपनों ने मुझको,था फिर से जिला दिया..!!
है उससे अच्छी ग़ज़ल मेरी,मैं साथ इसी के जी लूंगा,
इक जाम ज़हर का घोल के,अब खुद को पिला दिया..!!
अब भरोसा कलम पे है,अब कागज़ का साथ निभाना है,
कुछ और बचा न "मतवाला",सबकुछ तो जला दिया..!!
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