, ताकि आगे की यात्रा को, ऊर्जा मिल सके गति क्लांत तन को, विश्राम मिल सके गूढ़ ग्रंथि मन की, सहज खुल सके गीत मुख से निकले, मीत मिलन हो सके स्वकर्म निदान हो सके, स्वधर्म संधान हो सके जग को तुम्हारे होने का, किंचित भान हो सके
तोहमत की लकीरों को मिटाती रहीं । मुनासिब- ग़ैर मुनासिब की आवाजें किसी के गले में भर्राती रहीं, किसी का कान में गूंजती रही ।। जमाना बदले या ना बदले मोहब्बत की लहरें अपना काम करती रहीं।।