ऐसा मन बावरा ढूँढे तुझे हर पहर कभी था जो शांत गाँव सा आज बन बैठा आवारा शहर ऐसा मन बावरा पल में बुझ सा जाता है पल में आबाद कभी समंदर में गोते लगाता कभी बिन पँख ही उड़ जाता है ऐसा मन बावरा
ज़ख्म हो गहरें..चाहें .. दर्द़ हो बेमिसाल़ .. फ़साना बनने से पहले चेहरे पे रख मुस्कान .. बस मुस्कुराते रहिए यही है ज़िंदगी बस ख़ुद से अनजान बने रहिए मुस्कुराते रहिए और चलते रहिए...🙋🏽♀️
ये बसंती बयार छेड़ जाती है सोई हुई रागिनी को किताबों के गुलाब फिर से महकने लगते हैं मनमयूर नाच उठता है आँखों का काजल तुम्हें पुकारता है पैरों की छमछम मिलन के गीत बन जाती है और बावरा मन बुझी सी प्रीत में प्राण भर जाता है . ...
मदहोशी छा जाती है, तुमसे मिलने की चाहत में ख़ुद ही खो जाता हूँ, तुम्हारी धुन में ही रंग जाता हूँ, तुम्हें पाने की चाहत में, बावरा हो जाता हूँ, तुम्हारी धुन में रहता हूँ मैं भी तेरे जैसा हूँ, तू भी मेरी जैसी है...!