ये रस्मों रिवाज़ो की 'दुनियां' है कैसी
तड़प ज़िन्दगी को बस , देखा करे हम
वजह बनती है 'आंख' का हर ये आंशु
जो तकदीर ऐसी तो , क्या भी करे हम
विधाता की रचना जो 'जननी' हमारी
बंधी सर से ले पाव , बांधा करे हम
समय की कोई होगी 'तब' की जरूरत
अभी 'आज' की क्यूं न, सोचा करे हम
फ़लक तो वही है नया 'आसमां' है
क्यूं उम्मीद कोई 'तोड़ा' करे हम
नही कोई 'बंधन' जो सैलाब 'मन' को
क्यूं उड़ने से 'परियों' को रोका करे हम
वही जो 'खुशी' है कोई 'खुदकुशी' है
क्या जीकर भी कोई 'मर' कर करे हम
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