यूँ आये तुम खूब गपिआये फिर मुझे रुलाकर चल दिये आये ही थे तो पहले ढंग से समझ लेते फिर तब अपना प्यारा सा कुठाराघात देते जब अदब दिखाया दिया अपना प्रेम बोल तुमने बोला तेरा नहीं है यह वास्तविक मोल फिर भी मैंने सत्कार किया अपना नित्यदिन आभार दिया तुम्हें लगा भला...ऐसा क्या होता है! इस जीवन में कोई ऐसा कैसे जीता है मेरे आभार को तूने तंज दिया अपना हर कटाक्ष बोल मेरे पे जड़ दिया थोड़े और फिर मुझे सुलगाये जब मुझ पर ढेरों झूठे इल्जामात तुमने मढ़ दिया अब यह तेरा कौन सा प्रेम बुलावा लेकर आते जैसे है कोई मायावी दिखावा खाक असर होगा क्या मुझ पर इसका जब मैंने ताउम्र के लिये तुम पर भी अब बहिष्कार का तमाचा जड़ दिया!
आँखों के आँसुओं को मुस्कुरा कर छिपा लेते हैं कितने समझदार हो गये हैं न हम ?? कभी एक छोटी-सी डाँट पर रो-रोकर पूरा घर सर पर उठा लेते थे आज ज़िन्दगी की हर चोट पर खुद को सम्भाल लेते हैं....!!