Suman yadav   (शिवमन_सुमन)
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Joined 21 February 2019


Joined 21 February 2019
27 APR 2022 AT 12:38

तरक्की की आँधी ऐसी चली है
माँ बेटे के घर में बंदी बनी हुई है
बहु त्रियाचरित्र संस्कारवान सुघड़ बनी हुई है
सांस सुघड़ भी फुहड़ता की उपाधि से नवाजी गई है
चरित्रहीन चरित्रवान कहलाता है
चरित्रवान की और हजारों उंगलियां उठी हुई है

तेरी दुनिया तेरे जैसी मेरी दुनिया मेरे जैसी
कहीं पतझड़ में भी पात हरे भरे हैं
और कहीं, बसन्त में भी पतझड़ लगा हुआ है
तमाशा है जिंदगी, कभी मज़ा है कभी बेमज़ा है
किसी के लिए सिर्फ मज़ा ही मज़ा है
और किसी के लिए बेमज़ा ही है पूरी जिंदगी
ना तू कुछ कर रहा है ना मैं कुछ कर रही हूँ
हो वो ही रहा है जो दाता कर रहा है

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24 APR 2022 AT 13:12

इंसान में, आज के वक्त में, इंसान कम रह गया है।
गिद्ध से भी कहीं ज्यादा, आज इंसान गिद्ध बन गया है।
गिद्ध अधमरे जीव को उतना नहीं नोचता खसोटता है।
जितना आज इंसान को इंसान नोच खसोट रहा है।

*********** सुमन यादव **********

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24 APR 2022 AT 11:22

अंतर्द्वंद्व अंतर्मन
बाहरी मन ( बाहरी जगत )
संग निरंतर जारी है

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8 MAR 2019 AT 10:23

संस्कारों की मौत हो गई
पुलिस नाकाम
कातिल तलाश करने में
सभ्यताओं, मर्यादाओं की चोरी हो गई
यहाँ भी पुलिस नाकाम
चोर ढूढ़ने में
अंधेरे बढ़ रहे
रोशनी लुप्त हो गई
सब हैरान परेशान
झूठ हंस रहा
सच को कर परेशान
आशा की एक किरण कहीं टिमटिमा रही
वजूद को तलाशती
सब मौन, अंधे, गूंगे, बहरे
सन्नाटा चिख चिख चिल्ला रहा
नारी..! नारी के लिए आज मौन
पाप के पोषण में तल्लीन

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25 OCT 2021 AT 22:45

नित पत्थरीले पथ पर चल कर....
लहूलुहान होने से खुद को बचाएं कैसे?
नित आघातों से घायल हृदय पर
सांत्वना का मरहम लगाए कैसे?
कयी दशकों से बंजर हुए मन से
सृजन के मधुर गीत गुनगुनाए कैसे?
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तुम्हीं बताओ उल्टी गंगा बहाए कैसे?

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25 OCT 2021 AT 1:28

काश हम बदल पाते बीते लम्हों में जाकर
कड़वे पलों को जो रह रह कर कसकते हैं

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25 OCT 2021 AT 0:31

कुछ ऐसा लिखों ना जो रूह को छू जाए
तुम बदले नहीं हो इसका विश्वास हो जाए

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25 OCT 2021 AT 0:22

कुछ तो है
जो जोड़े हुए है
वो कुछ क्या है
कभी समझ नहीं आया
कुछ बकाया तो नहीं है
लेन देन कोई भूला बिसरा

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25 OCT 2021 AT 0:03

जंग का मैदान बन गयी है ज़िन्दगी
नफ़रत भी है तुझसे और नहीं भी है

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24 OCT 2021 AT 20:06

आगाज़ ही अंजाम हो
ये जरूरी तो नहीं है

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