घुटती रही ग़र बेटी,तो क्या अंजाम होगा,
सोचो जरा हैवानों, क्या परिणाम होगा।
कब तक बनी बैठी रहेगी फूल-सी कोमल,
बनेगी हर बेटी अंगारा,अब कोहराम होगा।
सामना ज़ुर्म का करने,उठायेगी कदम अपना,
होगा ख़ंजर हाथों में, ना अब विराम होगा।
ठानो सभी मिलकर, नहीं होगा अत्याचार,
यूँ ख़ामोश रहने से नहीं कुछ काम होगा।
लेकर रूप दुर्गा का,करेगी असुरों का संहार,
सावधान हो जाओ दुष्टों, अब संग्राम होगा।
अग़र नहीं समझे, समझदारी की बातों से,
तो नाम हैवानों के, मौत का इनाम होगा।
प्रश्न करती है"रीतू",देश के उन युवाओं से,
क्या इसी तरह से ही देश का नाम होगा??
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