Sangeeta Tanwar  
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Joined 5 August 2019


Joined 5 August 2019
4 OCT 2021 AT 18:11

बादलों के देश जाना था मुझे
और काफ़िलों के मुक़ाम पत्थरों के शहर थे

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27 SEP 2021 AT 19:00

ध्यान में बैठी स्त्री के आलोक में
घिरा पुरुष
आश्वस्त है
क्यूंकि प्रार्थना मे कमाए पुण्य भी
बांट देती है स्त्री
वो जान भी नहीं पाता
इस पुण्य का स्त्रोत कहां है
उसको नहीं ज़रूरत पुण्य कमाने की
किसी का ऋणी नहीं वो
क्यूंकि वो जानता है
स्त्री का अर्जित पुण्य भी
उसी की जागीर है

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22 SEP 2021 AT 16:53

जिनके लिए कोई दुआ नहीं करता
उनकी दुआओं में रहिये

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12 SEP 2021 AT 12:09

सुनो साथी!
ज़िंदगी में कह देना ही सब कुछ नहीं होता
होता वह है जिसे शब्द न दिए जाएं
जिसे आत्मा अपने मे छुपा लेती हो
जो रग-रग मे बहता हो
और दिखता न हो
जो पल-पल सुनायी देता हो
बहते हुए लहू में
मंदिर की घंटियों मे
नदी की कल-कल मे
जिसे बादल भिगोते हों
और हवा सुखाती हो
जो नयनों के अनदेखे नीर में बहता हो
और कलेजे की हूक मे उठता हो
वह अभिशाप हो कर भी
ईश्वर तुल्य है
क्योंकि वह हमें विराट से मिलवाता है

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26 AUG 2021 AT 18:55

सूखते हुए पौधे पर जब फूल
मुस्कराता है
तो लगता है

ईश्वर ने कोई गलती
माफ़ कर दी!!

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18 AUG 2021 AT 16:51

भीतर के लावे को जब उलीचने लगता है मन
एक कविता का जन्म तय है
इस लावे की सारी संतानें
कभी-कभी झंडा उठा कर खड़ी हो जाती हैं
सवाल करती हैं...
"तुमसे जन्म लेने की ये कैसी त्रासदी है
हम में से कोई भी रूपगर्विता नहीं हो सकी
किसी को श्रृंगारित नहीं किया तुमने
किसी को महावर नहीं लगाई
किसी ने मेहंदी नहीं रचाई
वही कसक, वही दर्द, वही टूटन
क्या पाया तुमसे जन्म ले कर
वही आधा अधूरापन"
क्या कहूँ उनसे
लावे की संतानें थीं वो
प्रेम की नहीं
कि महावर लगे पाँवों से काग़ज़ पर उतरें

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31 MAY 2021 AT 17:05

फूल रख दिए उसने पांव के तले
और फिर पैरों की ज़मीन खींच ली

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28 MAY 2021 AT 18:57

उनके अहले करम का अंदाज़ ऐसा था
हम ता उम्र सजदे में रहे गुनाहगार की तरह

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30 APR 2021 AT 14:35

खुशनसीब हैं आप
घर में बैठे हैं...
घर तो है आपके पास
घर में बैठने के लिए..

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21 MAR 2021 AT 14:48

जब पेड़ से पत्ते गिरते हैं
मन बैरागी होता है

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