समझदार हूं मैं तो...
यह बात , बोल कर, मुझे ही हर किसी को क्यों समझना पड़ता है,,
"रहने दो नासमझ है वह,,
क्यों बार-बार वह नासमझी करता है,..,
बार-बार समझदारी से मुझे ही क्यों चुप रहना पड़ता है..,,
"तुम तो समझते हो न...,"..
यह लाइन बोल मेरी कितनी बातों को ना समझा जाता है....,,
समझदार की गिनती में लाकर क्यों मुझे खुलकर हंसने से रोका जाता है,,,,..
-