सुबह होते ही मुझपे क्यूँ,चिल्लाता है कोई,
इन समझदारों के घर मुझे क्यूँ,समझ ना पाता है कोई,
रात सारी जब मैं जाग के गुजारूं,कोई सुलाने नहीं आता,
फिर सुबह-सुबह से काम के लिए क्यूँ,जगाता है कोई।
यहां सब लोग कहते हैं,ये कुछ काम नहीं करती,
मैं हैरान हूं सोचकर कि,क्या इतना काम भी करवाता है कोई।
ये सब तो बातें हो गईं हैं,रोज़-रोज़ की ही लेकिन,
इस ही बीच मुझे बेहद,याद आता है कोई।
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