वो देखो शाम होने को है
रूप धरा का बदल जाएगा ।
भोर से अंकित आभ पर था
वो सूरज रज में ढल जाएगा ।
ले के जाना है उसे संग अपने
जीवन के इक उजले दिन को ।
सुख बेला थी जो है बीत रही
फिर भोगुं क्यों न पलछिन को ।
मानो हुआ हो सत्ता परिवर्तन
रात्रि पदभार है हस्तक ले रही ।
कब से प्रतीक्षा में है रजनी
हो आतुर दर पे दस्तक दे रही ।
सृष्टि है व्यापक परिवर्तनीय
समयानुसार बदलाव जरूरी है।
दिन पश्चात निश अवश्यम्भावी
मानव तेरी तैयारी क्या पूरी है।
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