आज जब बारिश हुई तब तुम्हारा एहसास हुआ बारिश की बूंदों में , तुम नज़र आई मिट्टी की खुशबू में तुम्हारी खुशबू लिपट के, मेरे पास आई इन तेज़ हवाओं के संग, तुम्हारी यादें फिर मेरे पास लौट आई
इक ख्वाहिश की खिड़की, मेंने खोली है....... तुम्हारे लिए...... फिर बाल केनी में बैठ कर तुम्हारे लोट आने के इंतजार में...... मेंने अमावस्य की रातें, अकेले गुजारी है.....
अब ओर मुझे...... अकेले मत जीने दे ये तन्हा रातें....... मुझे तुम से दूर करना चाहती है
सुनो न...... जब सूरज की किरणें...... सारे जहां में छा जाती है तब इक ख्वाहिश की खिड़की मेंने खोली है.....
तुम रोज सूरज की किरणें बन के... मेरे आगोश पे रोज गिरती हो
इक ख्वाहिश जो कभी पूरी हो जिसमें तुम हो चांद हो सर्द हवाओं के हर झोंके में , तुम्हारा एहसास हो बारिश की हर बूंद में, तुम्हारी मोजूदगी का एहसास हो मिट्टी की हर खुशबू में, तुम्हारे गर्म सांसों में, मेरे जिस्म लिपटा हो इक ख्वाहिश , जो कभी पूरी हो तुम्हारे लिए मेरी हर दुओं हो ऐसी इबादत, मेरी खुदा से हो इक ख्वाहिश जो कभी पूरी हो
तुम किसी गुलशन सी मैं किसी तितली सा तुम किसी रेल सी मैं किसी पटरी सा इक लम्हे में तुझसे मिलने का फिर तुझसे बिछड़ जाने का हर बार की तरह तेरी नजरों से नजरें मिलने का हर बार के तरह तुम्हारा नजरें फेर लेने का हर बार की तरह दिल में मलाल रह जाने का हर बार की तरह तुमसे मिल के तुम से बिछड़ जाने का