कह दूँ दिल की बात यह यत्न मैं हर रोज करता हूँ । इज़हार के नए-नए तरीक़ों की मैं खोज करता हूँ । काश कि समझ पाती वो मेरे शब्दों के मायनों को उसे लगता है मैं गंभीर नहीं हूँ सिर्फ़ मोज करता हूँ ।।
कई दफ़ा न चाहते हुए भी इंकार करना पड़ता है। हर पूछती आँख से इंसान को डरना पड़ता है। सच और भ्रम में फ़र्क़ यहाँ कौन करे और क्यूँ करे? कि हर शख्श को ख़ुद की ख़ातिर ख़ुद से ही लड़ना पड़ता है।।
मुझे पता है ; तेरे दिल में भी कुछ-कुछ तो होता है पर तू मुझे अपने दिल की बात कभी नहीं बताएगी । चलने दो चलता है जब तक अनकहा रिश्ता हमारा ; पर जान ले ; तू ऐसा करके खुद को भी रुलाएगी ॥
मेरी धक, धक करती हर धड़कन तेरा ही नाम बुलाती है। क्या चिहुँककर कभी तू भी गहरी नींद से जाग जाती है ? तुमसे मिलने के बाद मेरे साथ तो अक्सर ऐसा होने लगा है । अगर तेरी हालत भी मेरे जैसी है तो क्या अनुमान लगाती है ?
तुमसे दिल लगाने की ख़ता हो गई है मुझसे। चाहकर भी नहीं जा पाता हूँ कभी भी दूर तुमसे। तुम्हें भूलने की मैंने कभी कोशिश भी की तो ; जान चली जाएगी मेरी ; कहता हूँ कसम से ॥
वो फिर तेरे इलाक़े में आयेंगे । बिना बुलाये घर-घर जायेंगे । तेरे बरामदे में बैठ खाना खायेंगे । तेरे साथ सेल्फी खिंचवायेंगे । तुम्हें महान बतायेंगे । तेरे सामने झोली फैलायेंगे । तेरे पैर छुयेंगे । तुम्हें गले लगायेंगे । बातें बनायेंगे । तुमको रिझायेंगे । तेरे ज़ख्मों पे मरहम लगायेंगे । अपनापन दिखायेंगे । अपनी गलतियों के लिए माफ़ी माँगेंगे । नए वादे करेंगे । कसमें खायेंगे । कुछ गिफ्ट्स तुम्हारे बच्चों को देंगे तुम्हें भी नोटों की गड्डी थमायेंगे । वो सिर्फ तुम्हारे हैं ऐसा करके दिखायेंगे । पर तभी तक ; जबतक तुम उन्हें अपना कीमती वोट देकर उनके गुलाम नहीं बन जाते ।।