हॉस्टल की मोटी-कच्ची रोटियां और ये नीरश सा खाना,
माँ तेरे हाथ के खाने का कभी मै था दीवाना,
दिन में एकबार खाकर अब तो भूख मर जाती है,
माँ तू नहीं अब ये भूख मुझे खाना खिलाती है।
जो खाने में करते थे हजार नखरे कभी,
वो यहाँ आज कुछ भी खा जाते हैं,
माँ तेरे हाथ के खाने को यहाँ तरस जाते हैं।
घर पहुँचते ही कितना भी खा लूँ,
फिर भी तू यही कहती है कुछ खाता क्यों नहीं है,
दिनभर बस यही रटती है तू मुटाता क्यों नहीं है ?।।
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