कभी कभी, मैं घूम आता हूं, उन यादों के शहर में,
जहां तेरा बसेरा था, मेरी नजर में,
जुबां पर एक नाम था,
काफी कुछ कमाल था,
हसरतें हजारों थी, हरकतें हजारों थी,
और तू बेमिसाल, हम-ख़याल था ।
मैं ठहराव महसूस करता हूं,
उस समय के भंवर में फंसा हुआ,
बार बार वही लौट आता हूं,
पता नहीं ये कैसा नशा हुआ,
मैं तुम्हारे इर्द गिर्द घूमता रहता हूं,
हर बार अलग दिशा से सोचता हुआ,
हर बार अलग दशा को सोचता हुआ,
मैं कितनी ही मर्तबा लौटता हूं, तुम्हें पाने को,
हर दफा, वो पल सारे, संग फिर से बिताने को ।
मैं ठहरा हुआ ही हूं, इस जमाने में,
जीवन बिताने को, थोड़ा कमाने में,
लोग कहते हैं अक्सर, कि आगे बढ़ो,
क्यों थम जाते हो, यादों के बहाने में,
मैं भी सोचता हूं कभी, आगे जाना कहां हैं ?
क्या मुझे वही लौटना हैं आखिर, तू जहां हैं ?
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