उम्मीद की सहर अब दुनिया को दिखाना है।
जिसने निभाए रिश्ते कदमों में जमाना है।
हालात होगें मुश्किल लेकिन परख तो होगी
दुनिया की हकीकत को कितना कहां जाना है।
अक्सर जिया करते हैं ख्वाबों की सरपरस्ती
आंखें खुलेंगी जब भी मुश्किल को निभाना है।
मंजिल मिली है तुमको तो फर्ज ये निभाना
दोराहे पर पहुंचकर एक दीप जलाना है।
शीशे सा लिए दिल हम पत्थर की शहर आए।
कैसे लगाऊं दिल यह सबसे तो बचाना है।
नफरत की फस्ल बोकर हम अम्न उगाएंगे
ये जादू सियासत का किस किसको दिखाना है।
खामोशियां में लब हैं पर प्रश्न है आंखो में
क्या हमको मिटा कर ही फिर हमको बनाना है।
खैरात की किश्तों का अब तो हिसाब दे दो
ताले लगा जेह्म पर जम्हूरियत लाना है।
योगेंद्र पाठक
लखनऊ
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