yogendra pathak   (Yogendra Pathak)
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खामोशियों में मन की आवाज हूं मैं
Joined 23 December 2022


खामोशियों में मन की आवाज हूं मैं
Joined 23 December 2022
2 MAY AT 12:57

उम्मीद की सहर अब दुनिया को दिखाना है।
जिसने निभाए रिश्ते कदमों में जमाना है।

हालात होगें मुश्किल लेकिन परख तो होगी
दुनिया की हकीकत को कितना कहां जाना है।

अक्सर जिया करते हैं ख्वाबों की सरपरस्ती
आंखें खुलेंगी जब भी मुश्किल को निभाना है।

मंजिल मिली है तुमको तो फर्ज ये निभाना
दोराहे पर पहुंचकर एक दीप जलाना है।

शीशे सा लिए दिल हम पत्थर की शहर आए।
कैसे लगाऊं दिल यह सबसे तो बचाना है।

नफरत की फस्ल बोकर हम अम्न उगाएंगे
ये जादू सियासत का किस किसको दिखाना है।

खामोशियां में लब हैं पर प्रश्न है आंखो में
क्या हमको मिटा कर ही फिर हमको बनाना है।

खैरात की किश्तों का अब तो हिसाब दे दो
ताले लगा जेह्म पर जम्हूरियत लाना है।

योगेंद्र पाठक
लखनऊ

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2 MAY AT 12:55

उम्मीद की सहर अब दुनिया को दिखाना है।
जिसने निभाए रिश्ते कदमों में जमाना है।

हालात होगें मुश्किल लेकिन परख तो होगी
दुनिया की हकीकत को कितना कहां जाना है।

अक्सर जिया करते हैं ख्वाबों की सरपरस्ती
आंखें खुलेंगी जब भी मुश्किल को निभाना है।

मंजिल मिली है तुमको तो फर्ज ये निभाना
दोराहे पर पहुंचकर एक दीप जलाना है।

शीशे सा लिए दिल हम पत्थर की शहर आए।
कैसे लगाऊं दिल यह सबसे तो बचाना है।

नफरत की फस्ल बोकर हम अम्न उगाएंगे
ये जादू सियासत का किस किसको दिखाना है।

खामोशियां में लब हैं पर प्रश्न है आंखो में
क्या हमको मिटा कर ही फिर हमको बनाना है।

खैरात की किश्तों का अब तो हिसाब दे दो
ताले लगा जेह्म पर जम्हूरियत लाना है।

योगेंद्र पाठक
लखनऊ

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1 MAY AT 15:23

जिनके हाथों में सत्ता है।
जो भी सियासत का हिस्सा है।
जो भी नौकरशाही थामे
कार्यपालिका को पहचाने
उच्च पदों पर जो हैं बैठे
सत्ता बल के मद में ऐंठे
इन सबके ऊपर सत्ता है।
जिसे भूल जाते ये अक्सर
और गौर से देखा जाए
कौन नहीं मजदूर यहां पर

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1 MAY AT 12:39

लक्ष्य चुनो और साहस रखो
दुविधा की हर कड़ी मिटा दो
मार्ग की जितनी भी बाधाएं
दृढ़ता ओढ़ो दूर हटा दो।
ख्वाबो को बुनने से पहले
उम्मीदें बढ़ने से पहले
कठिन राह चुनने से पहले
लक्ष्य पे अपनी दृष्टि टिका दो।
मंजिल तो कदमों में होगी
केवल श्रम को साध्य बना लो

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30 APR AT 23:37

जिससे मिल राहत मिलती हो
गुलशन में कलियां खिलती हों
फूल झरें जिसके हंसने से
मुस्काने हर दुख हरती हों
आतप मन के जो भटका दे
टूटा बिखरा दिल बहका दे
भाव पटल पर आकर वो तो
मन में बस कलियां चटका दे
जिससे मिलने को मन तड़पे
जिसकी आहट पर दिल धड़के
आंखो की जो भाषा समझे
मन आंगन में दिया जला दे
बस वही मनमीत मिला दे..

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30 APR AT 23:20

किधर जाना है तुमको काश ये तुमको पता होता।
न होती गफलतें तुमको न ही मैं मुब्तिला होता।
चिरागों को हवाओं की खबर गर हो गई होती
न होती तीरगी माहौल भी बिलकुल जुदा होता।

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30 APR AT 17:09

खुद को जटिल बना लेने तक
परछाई को पा लेने तक
रेत के महल बना लेने तक
ख्वाबों के आगे या पीछे
बहुत दूर तक जा लेने तक
खुद को सहज बनाना होगा
बस खुद को समझाना होगा
जान हकीकत को पहले ही
संभल संभल कर जाना होगा।

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30 APR AT 16:57

मिलकर तुझे बिछड़ जाने का
खिल कर रोज बिखर जाने का
ख्वाब के जैसे मिट जाने का
मन ही नही होता....
गीतों में बिरही बनने का
उलझन के ताने बुनने का
तुम्हे छोड़ दुनिया चुनने का
मन ही नही होता...
रेत पे लिखकर बह जाने का
जख्म नए अब सह जाने का
बनते बनते ढह जाने का
मन ही नही होता...
तुम बिन रोज जिए जाने का
हर गम सब्र किए जाने का।
ख्वाबों की मंजिल के पहले
तुमसे अलग थलग जाने का
मन ही नही होता...

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30 APR AT 16:54

मिलकर तुझे बिछड़ जाने का
खिल कर रोज बिखर जाने का
ख्वाब के जैसे मिट जाने का
मन ही नही होता....
गीतों में बिरही बनने का
उलझन के ताने बुनने का
तुम्हे छोड़ दुनिया चुनने का
मन ही नही होता...
रेत पे लिखकर बह जाने का
जख्म नए अब सह जाने का
बनते बनते ढह जाने का
मन ही नही होता...

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30 APR AT 15:57


इसलिए ही पीछे रहता हूं
जीवन की दौड़ में मैं प्रायः
कोशिश में सदा उलझता हूं
गिरते को कभी उठा पाऊं
जो ठोकर खाते चलते हैं
उनके समदर्श मैं चल पाऊं।
जो दौड़ में आगे होते हैं
उनको तो कुछ परवाह नहीं
कितने फिसले कितने टूटे
उन तक तो कोई आह नहीं
कोई तो उनका मान करे
हर कोशिश का सम्मान करे
टूटे पंखों से यहीं कहीं
ऊंची उड़ान का भान करे
उनके जुनून हर मुश्किल को
संग चल चल कर आसान करे।
इसलिए ही पीछे रहता हूं
जीवन की दौड़ में मैं प्रायः

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