पहचान
तुममें तुम कितने हो?
तुम गोरे हो या कि काले हो,
आदमी हो या कि औरत हो,
बच्चे हो या कि बूढ़े हो,
पर तुममें तुम कितने हो ?
हिंदू हो या कि मुस्लिम हो,
शहरी हो या कि देहाती हो,
धनी हो या कि निर्धन हो,
पर तुममें तुम कितने हो?
तुम देशी हो या कि विदेशी हो,
दर्ज़ी हो या कि व्यापारी हो,
मालिक हो या कि नौकर हो,
पर तुममे तुम कितने हो?
सुखी हो या कि दुःखी हो,
नैतिक हो या कि अनैतिक हो,
चाहे भले तुम जो भी हो,
पर तुममें तुम कितने हो?
सब कुछ ही तुमने बाहर से सोखा,
तुम्हें तन, मन और समाज ने रोपा।
हक़ीक़त में तुम बस उधार का एक चेहरा हो,
जिस पर तुम अपनी मालकियत का धोखा हो।
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