23 APR 2017 AT 21:45

इस्कूल में म्हारे अंग्रेजी के गुरु थे- श्यामपाल जी। स्वभाव माँ की चा वरगा मीठा तो बोली उतनी ही कड़क। अपने काम तै घणा लगाव था। हम सब बालक उनके मुरीद थे। उनकी हां की जगह ओके कहण की आदत थी।
इब इस्कूल सरकारी, हम बालक उद्दंड़। उम्र का किमी फेर था इस्कूल में पढाई तै ज्यादा छोरी बढ़िया लग्गै थी। क्लास में किमी घणा रौला होगा था, गुरूजी के मनाऐं भी हम ना माने तो उन्होंने खड़े होके एक बात कही, "बेटा पढ़ना पढ़ो ना तो रहन दो। हमे कुछ फर्क ना पड़ता। अब तुम मजे लोगे, बाद में बाहर तुम्हारा मजाक बनेगा। ओके।"
उस टेम किमी समझ ना आया। मुँह झुकाके रहगे। इब दुनियादारी पल्ले पड़ी तो उनका ओके याद आवै है।

- यष्क