चंचल है वो बहुत ,
उसे, शब्दों से नहीं बांध सकते,
इतनी गहराई को हम
किनारे से नहीं जान सकते,
आवारा तो नहीं लेकिन मैं
उससे यूंही मिला था कहीं,
जहां जरूरत नहीं थी मुझे
पूरी तरह है "मैं" होने की,
तब जाना था मैंने "उसे" और वजह
उसकी, हूं दुनिया से जुदा होने की,
अब नहीं दिखती वो
शायद गांव गई है,
पिछले कुछ दिनों में जैसे
ठंडो से पेड़ की छांव गई है !— % &
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