★꧁༒☆•🆂🅰🅷🅸🅻 🅺🅷🅰🅽•☆༒꧂★  
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Joined 3 June 2020


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हम थे, तुम थे, कई हसीन ख़्वाब थे,अभी कल की बात है
हर तरफ थी खुशी, रंग बेहिसाब थे,अभी कल की बात है

ये बेरुखी, ये तल्ख़ लहज़ा,ये जो बुरे तुम्हें हम लग रहे हैं
हमीं सबसे अच्छे थे,बाकी सब ख़राब थे,अभी कल की बात है

अब किससे अपना दर्द सुनाएँ,सब दोस्त यार भी भूल गए
हम रौनक-ए-बज़्म-ए-अहबाब थे,अभी कल की बात है

अब तो हँसना भी चाहें, तो आँख से आँसू निकल पड़ते हैं
इन उदास होंठों पर भी,कहकहे लाजवाब थे अभी कल की बात है

ये जो लहू लहू है बदन मेरा,ये जो ख़ार ख़ार है जिंदगी
ये सिला मिला है ईश्क़ में,नहीं तो हम भी गुलाब थे,अभी कल की बात है

पत्थर समझ के जिसने, अपने रस्ते से मुझे हटा लिया
उसकी नज़र में हम गौहर-ए-नायाब थे,अभी कल की बात है

कुछ हादसों ने हमें आसमाँ से, जमीं पे गिरा दिया
ऐ! 'साहिल' हम मिस्ल-ए-आफ़ताब थे,अभी कल की बात है

-



तेरे दिल से क्या निकले, हम ख्वाबों ख्यालों को तरस गए
ना जमीं के रहे ना फ़लक के,हम चाहने वालों को तरस गए

अपने ही लहू से बुझाई है, हमनें तिश्नगी अपनी अक्सर
इतने गम के दरिया मिले,खुशी के दो प्यालों को तरस गए

कुछ के हिस्से में चाँद आया,और कुछ के हिस्से में सूरज
हम जैसे बदनसीब लोग,जुगनू भर उजालों को तरस गए

बहुत ख़लता तो उनको मेरा शिक़ायत भरा लहज़ा
हम ऐसे चुप हुए कि, लोग मेरे सवालों को तरस गए

अमीरों की महफ़िल में खाने खराब होते रह गए
और गरीब मेरे शहर के,चन्द निवालों को तरस गए

मैंने तस्वीरों में देखा है,बहुत खूबसूरत थी हँसीं मेरी
अब तो रोती हुई आँखें हैं,हँसते हुए गालों को तरस गए

कोई फिर से मुझे यूँ दर्द दे,कि मैं रो सकूँ तमाम उम्र
एक मुद्दत से खाली आँसूँ मेरे,दिल के छालों को तरस गए

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शब-ए-फ़िराक़ हूँ मैं, सुब्ह-ए-वस्ल नहीं हूँ मैं
लगता है कि बहुत खुश हूँ,दरअसल नहीं हूँ मैं

मैं बाग़ हूँ कुछ हसीन सुनहरे ख्वाबों का
कुछ बेतुकी ख़्वाहिशों का जंगल नहीं हूँ मैं

जज़्ब कर लेता हूँ खुद में ग़मो के कई दरिया
ख़ामोश समन्दर हूँ, बरसता बादल नहीं हूँ मैं

कुछ लफ़्ज़ मिले थे ऐसे,कि ज़हर बन के उतरे
मैं ज़ुबानों से ज़ख्मी हूँ,तीरों से घायल नहीं हूँ मैं

तेरी ही ख़ुश्बू बसी है मेरी हर इक साँस में
तेरे एहसास से ही महकता हूँ, सन्दल नहीं हूँ मैं

मुझे पढ़ कर तुम्हें दर्द के सिवा क्या मिलेगा
रोता हुआ इक शेर हूँ,हँसती हुई ग़ज़ल नहीं हूँ मैं

तेरे लाख सितम के बाद भी बिखरा नहीं हूँ
पत्थर का मुज्जस्मा हूँ, शीशे का महल नहीं हूँ मैं

किसी टूटे हुए दिल की,अनसुनी कोई सदा हूँ
कई सदियों से अधूरा हूँ, मुक़म्मल नहीं हूँ मैं

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ए रूप नगर की शहज़ादी
थोड़ी सी इनायत हो जाए
इक रोज अगर तुम चुपके से
मेरी आँखों को सैराब करो
बेचैन मेरा दिल रहता है
कुछ और इसे बेताब करो
इस तल्ख़ हकीकत सहरा को
इक मीठा सुन्दर ख्वाब करो
इक रोज़ मेहरबाँ हो जाओ
मेरे दिल के निगेहबाँ हो जाओ
इस तपती धूप की सख्ती में
इक शाम की छाँव मिल जाए
मुरझा से गए है दिन मेरे
इक शाम तो मेरी खिल जाए
ओर शायद मेरे होंठों से
हर ज़ख्म तेरा भी सिल जाए
हम कैश नहीं फरहाद नहीं
पर फिर भी कहीं आबाद नहीं
शायद ये करिश्मा हो जाए
तुम्हे मुझसे मोहब्बत हो जाए
ए रूप नगर की शहज़ादी
थोड़ी सी इनायत हो जाए

-



मैं तुम्हें फिर मिलूँगा
इसी जन्म में
तुम्हारी ही कोख़ से
जन्म लूँगा
इस बार तुम
प्रेमिका नहीं
माँ बनकर
लुटाना मुझपे
तुम्हारा वही
पहला वाला प्यार
जो रह गया था
पिछले जन्म
में अधूरा
(कैप्शन में पूरा...)

-



तुम वो चाँद हो
जिसमें ना कोई दाग़ है
ना जिसे कभी
लगता है ग्रहण
और ना जो कभी
होता है ग़ुरूब
चमकता रहता है यूँ ही
हुस्न के आसमाँ पर

तुम वो गुलाब हो
जो ख़िज़ाँ की रुत में भी
महकता रहता है यूँ हीं
जब सारे फूल पत्तों का रंग
पड़ जाता है ज़र्द
तुम्हारा ये सुर्ख़ रंग
तब भी बरकारर रहता है

(कैप्शन में पूरा....)

-



तेरे बगैर अब इस दिल का, गुजारा हो नहीं सकता
जो ईश्क़ था तुम्हीं से था, अब दुबारा हो नहीं सकता

अब ख्वाबों से कह दो, अपना ठिकाना कहीं और ढूँढे
आँखें कहती है नींद से अब, ताल्लुक हमारा हो नहीं सकता

किस बात का तुम्हें डर है, जो तुम्हारे क़रीब मैं रहूँ तो
तुम चाँद हो सकते हो,तो क्या मैं सितारा हो नहीं सकता

हमनें तुम्हें मोहब्बत में, बेहद और बेपनाह चाहा है
मेरी चाहत के समंदर का,कोई किनारा हो नहीं सकता

मोहब्बत करके हमनें एक बात जरूर सीखी है कि
ज़हर कितना भी कड़वा हो,ईश्क़ से ख़ारा हो नहीं सकता

किसी एक का दिल तोड़ कर,तुम लाख दिलों को जोड़ दो
फ़िर भी उस टूटे हुए दिल का,कोई कफ़्फ़ारा हो नहीं सकता

ये माना कि तुमने हमें तोहफ़े में,अश्क़ों का दरिया दिया है
मगर तुम्हारी आँख में हमें, एक आँसूँ भी गँवारा हो नहीं सकता


उसमें मोहब्बत ढूँढ़ते ढूँढ़ते, ये आँखे थक के हार चुकी है
मैं भूल गया था कि सहरा में, पानी का नज़ारा हो नहीं सकता

हमनें जिंदगी से सिर्फ़, एक ही शख़्श माँगा था 'साहिल'
उसने कहा वो किसी का भी हो,मगर तुम्हारा हो नहीं सकता

-



मैं ख़ामोश सा लड़का हूँ,और वो चँचल सी लड़की
हर वक़्त ख्यालों में रहती है, एक पागल सी लड़की

साँवली सी सूरत है,पर बला की खूबसूरत है
मैं कच्चा कोई मकां हूँ, वो महल सी लड़की

है किसी परी सा ख़्वाब वो,मोहब्बतों की किताब वो
वफ़ा की मूरत है, हया का वो आँचल सी लड़की

मैं जब जब उसमें देखता हूँ, खो सा जाता हूँ
मैं एक मुसाफ़िर भटका हुआ, वो जंगल सी लड़की

वो है तो अभी भी थोड़ी बहुत,रौनकें बाकी है मुझमें
मेरी कीचड़ सी इस दुनिया का,वो है कँवल सी लड़की

ये दिल क्या रूह भी उसकी मोहब्बतों की प्यासी है
मैं एक सूखी जमीं सा,और वो बादल सी लड़की

वो है तो कोई दर्द-ओ-ग़म, मेरे करीब भी ना आ पाएगा
मेरी जिंदगी के माथे का,है वो काज़ल सी लड़की

मेरे रग रग में बसी है, उसके एहसास की ख़ुश्बू
उसे ग़ुलाब का फूल कहूँ, या संदल सी लड़की

मैं उसको जब भी पढ़ता हूँ, ये जिंदगी गुनगुनाती है
किताब-ए-दिल में रहती है, एक ग़ज़ल सी लड़की

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कोई इन टूटे हुए ख्वाबों को, जोड़ कर रख दे
मैं सदियों से वीराँ हूँ,कोई मुझमें अपना घर रख दे

वो कौन लोग हैं, जो दर्द में भी मुस्कुराते हैं
कोई गमों में जीने का, मुझमे भी हुनर रख दे

वो जब भी सँवरती है, उसका हुस्न यूँ चमकता है
कोई आईने के आगे, जैसे सौ क़मर रख दे

अगर मालूम होता मज़ा इश्क़ का तल्ख़ है इतना
मैं कह देता ला के कोई, जुबाँ पे मेरी ज़हर रख दे

हर बार तेरी ख़्वाहिश में दिल दर्द से यूँ उलझता है
कोई तितली फूल की चाह में,काँटो पे जैसे पर रख दे

अब तेरा हिज्र मेरे दिल पर यूँ आया है कि
आईने पर जैसे कोई, सख़्त भारी पत्थर रख दे

मैं अगर वक़्त से, गुजरे हुए लम्हे चुरा सकता तो
मैं चाहता कि तू फिर से,मेरे सीने पे अपना सर रख दे

-



मैं नफरतों की बस्ती में मोहब्बतों का कारोबार करता हूँ
कितना मासूम हूँ, आईना हो के पत्थरों से प्यार करता हूँ

लोग हर बार किसी बहाने से एक नया ज़ख़्म दे जाते हैं
मेरी सादगी देखो,चिराग़ हो के हवाओं पे एतबार करता हूँ

मैं अक्सर दर्द देने वालों को भी गले से लगा लेता हूँ
मैं फूलों पर ही नहीं, काँटों पे भी जाँ निसार करता हूँ

मैं खताएँ माफ़ करता हूँ ,मैं जफ़ाएँ भूल जाता हूँ
मैं खूबियाँ याद रखता हूँ,खामियाँ दरकिनार करता हूँ

हज़ार ग़म है फिर भी मुस्कुराने से बाज़ नहीं आता
अजीब शख्श हूँ, ख़िज़ाँ की रुत में जश्न-ए-बहार करता हूँ

तहज़्ज़ुद की नमाजों में ख़ुदा जब पूछता है क्या माँगते हो
मैं दुआ में हाथ उठा के, जिक्र तेरा ही हर बार करता हूँ

तेरे अहसास की खुश्बू बसी है, अभी तक मेरी साँसों में
मैं हिज़्र की शब में भी हर रोज वस्ल-ए-यार करता हूँ

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