काश ! कोई हमें बुलाता आवाज़ देकर ,
और अपने पास बैठता हाथ पकड़कर ,
जानने को वोह हमारा हाल-ऐ-दिल ,
पूछता हमसे बेहद ज़िद कर-कर .
काश ! कोई हमारी नब्ज़ पकड़ कर ,
हमारी तबियत का जायजा लेकर ,
पूछता ” तुम ठीक तो हो , कैसा है हाल ?
कह दो सब ! मत रखो कुछ छुपाकर .
काश ! कोई हमारी पेशानी पढ़कर ,
और कभी आँखों में गहरा झांक कर .
पूछता हमसे हमारी परेशानी का सबब ,
हमारी उदासी की फ़िक्र में रहता हर पहर .
काश ! किसी के पास होता इतना वक्त ,
बैठकर हम घंटो बतियाते वक़्त-बेवक्त ,
कभी -रूठना – मनाना ,कभी शिकवा-शिकायत .
पल में गुज़र जाता हर उबायु वक्त .
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