वंदना सक्सेना बेपरवाह   (वंदना सक्सेना 'बेपरवाह'©)
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Joined 19 May 2019


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Joined 19 May 2019

तुम्हारा शौक तुम्हें ही नज़्र कर रही हूँ...
हाँ! इस शेर में, मैं तुम्हारा ज़िक्र कर रही हूँ...— % &

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शायद तुम्हारे पास सुनने का भी वक़्त ना हो...
ये सोचकर मैंने कुछ कहा नहीं तुमसे...

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टूट कर पूरी तरह जब मैं बिखर जाती हूँ...
खुद अपनी ही बाहों में सिमट जाती हूँ...

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अब ना कोई शिकवा... ना शिकायत करेंगें...
एक तरफा ही तुमसे मोहब्बत करेंगें...

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दफन कर दीं हमने सारी ख्वाहिशें अपनी...!
कहाँ तक हर रोज तुम्हारी मिन्नतें करते...!!

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तुमसे बात करना...
सपने के सच होने जैसा होता है...
पर हर सपना कहाँ सच होता है...!

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मुट्ठी में बंद हैं जो...
ख्वाब तेरे हैं...
दिन-रात सोच रही हूँ...
ख्याल तेरे हैं...

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तेरा इतने करीब आ के लौट जाना...
जैसे बरसात बिन बादल का आ के लौट जाना...

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जीने का मज़ा भी तभी आता है...
जब लोग आपके मरने का इंतजार कर रहे हों...

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पहले अँधेरे में डर लगता था...😱
अब सुकून मिलता है...😇

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