"बहु"
तपती बुखार में भी रोटियां सेकती है
घर का झाड़ू पोछा और बाकी सारे काम करती है
किसको खाने में क्या पसंद है ये याद रहता है उसको
बस अपनी दवाई लेना भूल जाती है
सब बदल जाता है जब एक बेटी, बहु बनके ससुराल आती है
सुबह उठने में देर हो गई तो सब क्या कहेंगे
किसी ने शिकायत कर दी तो मां बाबा कैसे सहेंगे
बिस्तर पे चाय मांगने वाली अब सबको चाय पिलाती है
सब को खुश तो रखती है मगर धीरे धीरे वो खुद जीना भूल जाती है
सब बदल जाता है जब एक बेटी, बहु बनके ससुराल आती है
सुहाग पर कभी कोई आंच न आए,
न जाने कितने व्रत और पाठ करती है
कभी मंदिर न जाने वाली भी अब दिल खोल कर दान करती है
घर की लक्ष्मी कहे जाने वाली दासी सा काम करती है
सब बदल जाता है जब एक बेटी, बहु बनके ससुराल आती है
मेरी हर झल्लाहट और कड़वाहट को हस कर टाल देती है
प्यार करूं या गुस्सा वो बदले में बस प्यार देती है
वो नंद को बहन, देवर को भाई, सास को मां और ससुर को बाबा सा आदर और सम्मान देती है
माइका भी अपना ससुराल भी अपना किसको घर कहना है बस इसी उलझन में वो जिंदगी गुजार देती है
सब बदल जाता है जब एक बेटी, बहु बनके ससुराल आती है
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