कितनी दफे कहा है मुझे वक्त दो ज़रा
अबके वो मिले जब तो इतवार ज़रूर हो
शायद यकीं न करता हो मेरे अल्फाज़ पे मगर
चाहता हूं कुछ कहूं तो उसको एतबार ज़रूर हो
रोकता नहीं हूं मगर रुक जाए तो बेहतर
उसको भी मेरी तरह मेरा इन्तजार ज़रूर हो
उसको बहाने चाहिए मिलने के गर मुझसे
वो जब भी मिले, मुझको थोड़ा बुखार ज़रूर हो
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