कुछ शब्द है जो हमे तीर की तरह चुभते है, हम रोजाना उस दौर से ना चाहते हुए भी गुजरते है, तालूक नही रखते उनसे जो मिला करते है इतफाकन दर्द तो हमेशा वो देते है जो रोज हमदर्द बनकर मिला करते है।
कल की सोच में अपना आज बर्बाद करते हो क्या हे वफ़ा की क़ीमत जिसकी तुम आश रखते हो धन दौलत से ता–उम्र तोला हर रिश्ते को कोई क़ीमत बोल जाए तो तुरन्त फ़रियाद करते हो।
सोचे ना थे ऐसे वैसे कुछ काम हो गए अधरो से अश्क भी फिर नीलाम हो गए बड़ी बेशर्मी से सीखा ही था, गलतियों पे अपनी मुस्कुराना हम ख़ुद ही ख़ुद पे हस के बदनाम हो गए।
कलम थी हाथ में पर में तक़दीर लिख ना सका खरीदार थे हज़ार पर में बाज़ार में बिक ना सका हाथ थाम कर चलने वाले भी कम ना मिले..मगर कांटे देख रास्तों के कोई साथ मेरे टीक ना सका।
विचारों के मतभेद में भेदी लंका ढा गए, शासन किसका चला ही है आज तक जहा अपने ही अपने को खा गए सयानी बाते और चालाकियों में फंसा कर न जाने कितने हुनरबाज भरोसे से परहेज़ सीखा गए।
एक ज्ञानी विज्ञान का स्वामी, करके भूल बना अभिमानी राक्षस वंश का था बलशाली भक्ति जिसकी शिव ने भी थी मानी हनन कर लाया वो श्रीराम से सीता फिर भला अब वो कैसे जीता?
रास्ता मुश्किल ही सही असंभव तो नही मंज़िल दूर ही सही पर नामुमकिन तो नही किस्मत का लिखा मिल ही जाता है एक दिन हा मगर किस्मत के भरोशे बैठा रहा इतना कायर तो नही।