रोज जिम्मेदारियों का बस्ता उठा, लिए कांधे पर बोझ
निकल जाता हूँ जिंदगी की पाठशाला की ओर
लेने कोई और सबक या देने एक ओर इम्तेहान
क्योंकि घर का मुखिया हूँ मैं जैसे तनी हुई एक कमान
अरे कभी मैं भी था एक खिलंदड़ नौजवान
कभी नग़मे गुनगुनाता था कभी मैं भी प्रेम चुगलाता था
कभी हारमोनियम गिटार पर हाथ आजमाता था
कभी कूंची ले बन कलाकार जाता था
कभी नया वाला कोई फ़ैशन आजमाता था
और कभी दरख्तों पर लिखता था कोई एक नाम
पर अब घर का मुखिया हूँ मैं जैसे तनी हुई एक कमान
दवाइयों की पर्चियां, दाल चावल के डिब्बे
आधी अधूरी फरमाइशों के किस्से
आटे का कनस्तर, राशन का दस्तरखान
सफाई पुताई जो कभी पूरी न हो पाई
आधी अधूरी बची हुईं कई ईएमआई
कापी किताबें, स्टेशनरी का सामान
जाने कितनी लाल चीटियाँ हैं मेरे घर में
जो खा जातीं हैं मेरे मन की चिड़िया को उड़ने से पहले
मिलती है मुझे कुछ बूढ़ी दुआएँ,
कुछ नन्ही खिलखिलाहटें, और बस एक मुस्कान
और मैं निकल जाता हूँ अगले दिन फिर से कमाने
क्योंकि घर का मुखिया हूँ मैं जैसे तनी हुई एक कमान
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