Vishaal Shashwat...  
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Joined 30 April 2019


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15 HOURS AGO

"चश्म
-ए-पुर-नम,
परेशां मन,
तड़पती रूह,
आशुफ़्ता ज़ीस्त,
मुन्तशिर से अरमां...

꧁𝒬꧂

उफ़्फ़...
ऐ ख़ुदाया...
अदब-ए-ख़िदमत में
अब
लिबास-ए-आख़िरत भी
मुक़र्रर कर दे ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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YESTERDAY AT 9:17

"कभी सहर का सिसकना, कभी शाम का बिलखना तो कभी रूह का तड़प उठना...
ऐ ज़िन्दगी.. अब बता भी दे ना कि- इंतज़ाम-ए-अदब-ए-ख़िदमत में क्या-क्या है ।।"
✍️- Vishaal Shashwat..."

-


2 MAY AT 11:43

"नेस्तनाबूद
महल
खुशियों का हुआ,
हम
किसी कब्रिस्तान के
वाशिंदे हुए ।

꧁𝒬꧂

क़हर
ऐसा बरपाया
तूने
ओ बेरहम् ख़ुदाया..
हम
फ़क़त उदासियों के नुमाइंदे हुए ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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2 MAY AT 10:02

"इस बेरहम् वक़्त से हारकर...
वक़्त से ही बग़ावत हमने ठानी है ।
है उम्मीद थोड़ी सी ज़िन्दा...
माना वक़्त की मारी ये ज़िन्दगानी है ।।

꧁𝒬꧂
किये हैं नेस्तनाबूद वक़्त ने अरमां सारे,
ख़्वाब चलो फिर भी सजा के और देखते हैं,
कि- कभी तो वक़्त भी आ गले मिलेगा...
क्या हुआ आज निर्झर बहता आँखों से पानी है ।।

꧁𝒬꧂
लो... खंज़र हाथों में ले निकल पड़ा,
राह-ए-ग़म में हो बेफ़िक्र अब बेहया "शाश्वत..."
कि- कभी मिटती... कभी फिर से गढ़ती,
वक़्त के हाथों चलती यही दर्दभरी कहानी है ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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1 MAY AT 15:03

"उफ़्फ़.... टूट बिखरे हैं शीशे से ख़्वाब मेरे कि- मेरी शाम-ओ-सहर नहीं है ।
हो चला हूँ तन्हा अंदर तलक यूँ, जैसे खुशियों को मेरी कोई ख़बर नहीं है ।।
꧁♔︎♔︎♔︎𝒬꧂
कह तो देता मैं सारे ही दर्द अपने, कोई सुनने तो आता कभी क़रीब मेरे,
अफ़सोस... इस दुनिया में मेरा कोई हमदर्द, कोई रहगुज़र नहीं है ।।
꧁♔︎♔︎♔︎𝒬꧂
क्या ही रोऊँ, क्या ही बिलखूँ.. अश्क़ भी तो अब मुझे छोड़ सा जाने लगे,
कि- ऐ मौत तू ही लगा ले मुझे गले,तू भी तो मुझे यहाँ मयस्सर नहीं है ।।
꧁♔︎♔︎♔︎𝒬꧂
अब बंज़र से दिल को मतलबी चकाचौंध से भला सजाना भी क्या साक़ी,
हो जाऊँ मुक़म्मल ही फ़ना कि- पास मेरे कोई सुकूँ का शज़र नहीं है ।।
꧁♔︎♔︎♔︎𝒬꧂
जब अतीत ना हुआ तेरा तो कल क्या ही मेहरबानी करेगा तुझ पर "शाश्वत"
चल.. जा भी तू दूर सबसे कि- अब पल-दो-पल की भी यहाँ बसर नहीं है ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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1 MAY AT 14:38

"लाज़मी
नहीं
हर-दम कोसना
क़ाफ़िला-ए-दर्द को,
उससे भी
राब्ता निभाना चाहिए ।

꧁꧂

कि-
इस बेरहम् सी
ज़िन्दगी से
छुटकारा पाने के लिए
साहिब...
इक बहाना चाहिए ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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29 APR AT 10:51

"उफ़्फ़...
जीने की हसरत
कहाँ रही
अब मुझमें,
कल की छोड़..
आज ही मौत मुक़र्रर कर दे ।

꧁𝒬꧂

ऐ ख़ुदा...
तू भी तो
थक गया होगा
मुझे रुला कर...
चल...
इसे ही मेरा ख़त-ए-मुक़द्दर कर दे ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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29 APR AT 8:57

"अपने अश्क़ों को स्याही बनाकर, इक "ख़त" हम तुम्हारे नाम छोड़ जाएंगे ।
तुम ना समझो जज़्बात हमारे, फिर भी हम यहाँ कुछ क़लाम छोड़ जाएंगे ।।
आज़िज़ आ.. ज़िन्दगी के खिलवाड़ों से रुख़सत ज़हाँ से होने चला "शाश्वत",
हाँ.. ग़र दो साथ तुम.. तो तुम्हारे हिस्से हम अपनी इक शाम छोड़ जाएंगे ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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27 APR AT 20:55

"आँखों में चुभते किसी काँटें सा, कोई अनचाहा सा बोझ हो जाते हैं ।
हाँ साहिब... ये बेरोज़गार लड़के ख़ुद के ही कफ़न-दोज़ हो जाते हैं ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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25 APR AT 21:57

"आलम-ए-तसव्वुर में हम तो उन्हें ही दौलत-ए-हयात समझ बैठे साहिब..
उफ़्फ़.. ख़ुदा ही रहम् करे हम पर.. हम जैसे तो उनके क़रीब हज़ारों हैं ।।"
✍️- Vishaal "Shashwat..."

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