हम जानते है कि आप हमारी जान है , तभी तो हमेशा करते आपसे क़लाम है , लोगों को लगता है कि इश्क़ में मिलना ज़रूरी है , और देखिये हमारी तो अलग ही पहचान है |
ये इश्क़ है ज़ालिम, कहाँ सबको मिलता है , एक बार हो जाए फिर तो बस दिल कि ही सुनता है , और उनको क्या खबर हमे हो गया है मर्ज़-ऐ-इश्क़ , हम उन्हे पुकारते रहे अब हमे कौन सुनता है |
राहें आज भी तेरी ही राह देखती है , नज़रे आज भी मुझसे नाराज़ दिखती है , और चाह है कि खुद से ज्यादा चाहूँ तुझे , पर तेरी आँखों में अब भी इंकार दिखती है |
ये मौसम, ये बारिश और ये सुहानी रातें करना चाहता है ये दिल बस तुमसे ही बातें ये इश्क़ ही है अब समझ में आया मुझे और जब मिलोगी तो क्या फिर से होंगी बरसातें?