Vikas Pathak  
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बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
Joined 31 January 2017


बना कर फ़क़ीरों का हम भेस ग़ालिब
तमाशा-ए-अहल-ए-करम देखते हैं
Joined 31 January 2017
8 APR 2019 AT 10:13

उस 'क्लासिक' नॉवल
में लगा बुकमार्क
बरसों से वहीं है।
न मुझे फ़ुर्सत है इतनी
कि उस तरफ़
पलट कर देखूँ,
और
ना ही वो अफ़साना
ख़ुद आगे बढ़कर
मुझको गले लगता है।

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31 JAN 2017 AT 20:32

We are intrinsically programmed to see bad as worse and better as good.

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12 OCT 2020 AT 12:54

आज भी दिल पर बोझ बहुत है
आज भी शायद नींद ना आए

-अज़हर इनायती

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12 OCT 2020 AT 11:22

कर मेरे सितमगर पे रहम, मुझसे ये सवाल न पूछ
मुझे आदत है सच बोलने की, तू मेरा हाल न पूछ

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9 OCT 2020 AT 13:18

जा और कोई ज़ब्त की दुनिया तलाश कर
ऐ इश्क़ हम तो अब तेरे क़ाबिल नहीं रहे

-जिगर मुरादाबादी

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9 OCT 2020 AT 13:00

ये अफ़्सुर्दगी ज़माने की कोई नयी बात नहीं
हम सब का मुस्कुराना भी रोज़ की बात है

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9 OCT 2020 AT 12:02

कोई देखे तेरी आँखों को तो ये भी देखे
कितनी ग़ज़लों ने उनमें ख़ुदकुशी की है

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9 OCT 2020 AT 11:45

कोई रिश्ता तो नहीं रहा तुमसे। मगर जब भी आईने से रूबरू होता हूं, ऐसा लगता है शीशे से छनकर एक आवाज़ आ रही हो। आवाज़ जो मखमली तो है मगर मांझे सी धारदार भी है। वही आवाज़ मेरे कानों में गूंजती है "कोई इतना भी बदल जाता है क्या?"

और मैं हैरान हूँ ये सोचकर कि ये तुम हो या आईना है?

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4 OCT 2020 AT 22:27

रोज़ रख जाता है
कोई एक फूल
रात के मज़ार पर।

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3 OCT 2020 AT 22:09

के सब आरज़ूएँ मेरी
भस्म हो रहें।
रहे तो बस
एक दिले-बे-आरज़ू
मेरे सीने में रहे।

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