कोई रिश्ता तो नहीं रहा तुमसे। मगर जब भी आईने से रूबरू होता हूं, ऐसा लगता है शीशे से छनकर एक आवाज़ आ रही हो। आवाज़ जो मखमली तो है मगर मांझे सी धारदार भी है। वही आवाज़ मेरे कानों में गूंजती है "कोई इतना भी बदल जाता है क्या?"
और मैं हैरान हूँ ये सोचकर कि ये तुम हो या आईना है?