Vijay Tyagi   (#माशारत्ती)
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8-Dec🎂
Joined 24 May 2019


8-Dec🎂
Joined 24 May 2019
11 HOURS AGO

पेट की जब भूख रोती
कर देते हालात विवश
काम पे जाकर मनाता
मजबूर तब 'मजदूर दिवस'

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14 HOURS AGO

फ़िर शायरी की नई...किताब लाया था
जैसे कोई बच्चा घर ख़िताब लाया था

कई दिनों तलक...निहारता रहा जिल्द को
घूँघट-ए-सुख़न जैसे कोई माहताब लाया था

सफ़्हा-दर-सफ़्हा बिखरी...मदभरी रुशनाई
बिन बोतल बेशकीमत नई शराब लाया था

रंगत मिरी-ओ-कमरे की...मत पूछो दोस्तों
जर्द-ओ-सियाह बदलने को शब-ताब लाया था

इसके सिवा कोई नशा...होता नहीं अब तारी
बाँध पुलिंदा राह-ए-नशा एक सवाब लाया था

झूठे-झूठे बहलावों से...ये दिल बहला ही नहीं
आख़िर समझाने दिल जवाब-ओ-जवाब लाया था

दिल को दिल लिखने ख़ातिर...आज ये 'माशारत्ती'
भरकर सुर्ख़ लहू कलम में ज़काब लाया था

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25 APR AT 2:49

Here....,
We Are....,
Together....,
To-Get-Her....
....❤️❤️

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15 APR AT 18:01

इस 'आलम-ए-दुनिया'
जो भी बशर पैदा हुआ है
'क़ुदरत-ए-ख़ुदा' पर
कहीं न कहीं शैदा हुआ है

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22 MAR AT 1:33

ओ कविता...
मैं तुम्हें कैसे लिखूं
कवि की कोमल
कविता में...,
तुम आती हो
गोमुख-रूपी
स्वयं भाव सरिता में...
वर्णित,उल्लेखित
परिभाषित तुमको,
कर पाऊं नहीं
इस शैशव
ग्रहीता में...
दिनकर और
प्रभाकर-निराला,
हुए नतमस्तक
आभ-सविता में...
ओ कविता...
मैं तुम्हें कैसे लिखूं
कवि की कोमल
कविता में...✍🏻🌹🌹

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5 JAN AT 0:53

खिड़की से बाहर वो धूप देख़ रहा था
जैसे कोई आशिक महबूब देख़ रहा था
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
सुनहली-सुनहली धूप होने लगी गुलाबी
जान गई कोई उसका रूप देख़ रहा था
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
नज़र बता रही है देखने वाले का नज़रिया
देखने वाली चीज़ वो क्या ख़ूब देख़ रहा था
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
ठिठुरते बदन की चाहत बस एक टुकड़ा धूप
टुकड़े में मिटती अपनी वो भूख देख़ रहा था
🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿🌿
हर शख़्स यहाँ मुन्तज़िर इस सर्दी की धूप का
मौसम भी गुनगुनी रानी का रसूख़ देख रहा था

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27 DEC 2023 AT 17:05

ग़र तेरा प्यार हो जाता मयस्सर
मुख़्तसर ही सही..,
तो ये चाहत दराज़-क़ामत
संभल जाती हमसे....

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22 DEC 2023 AT 12:43

ये उन दिनों की बात जब हम ख़त लिखा करते थे
ख़त के भीतर स्नेहिल चेहरे स्पष्ट दिखा करते थे
लेकिन अब तो क़ासिद का ही वजूद सिमट गया है
अधिकांश डाकघरों से तो नामोंनिशान मिट गया है
इक धुंधली तस्वीर स्मृति अभी भी शेष बचाए बैठी है
नई पीढ़ी तो अनभिज्ञ है,ये हमसे आस लगाए बैठी है
अंतरदेसीए,पोस्टकार्ड,लिफाफे देखे हुआ ज़माना
देकर मात मोबाईल संदेशो ने इन्हें किया रवाना
टिकट-रसीदी,पोस्टकार्ड किराने पर भी बिका करते थे
ये उन दिनों की बात जब हम ख़त लिखा करते थे...

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17 DEC 2023 AT 22:40

अब ना कोई खंजर... और ना कोई तीर चाहिए
जीने की ख्वाइश को, ना कोई तदबीर चाहिए

बुझा-बुझा सा रहने लगा है.. ये दिल न जाने क्यूं मेरा
अच्छी ख़बर सुनने ख़ातिर, क़ासिद नहीं बशीर चाहिए

आज के मजनूओं को देखो.. लैला की चाहत ही नहीं
दिल रश्कीन हो गया है.. इनको रांझे की हीर चाहिए

दिया जो हाथ मदद को.. उसने फेर लिया मुँह अपना
डूबते हुए को यारों अब, तिनका नहीं शहतीर चाहिए

हुश्न के दीवाने सभी.. यहाँ आवारा-ए-आलम मगर
बन सके परवाना जो, क़ाबिल-ए-फ़ना नज़ीर चाहिए

जिक्र तेरे हिज्र का कभी... सरे-आम करता नहीं
उजली यादों में बस तेरी, धुंधली सी तस्वीर चहिए

तेरी उल्फ़त में "माशारत्ती".. सरे-राह लूटा गया है
मुस्तक़बिल बन जाए तू , बस ऐसी तक़दीर चाहिए

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3 DEC 2023 AT 21:37

दिलफेंक सनम की खातिर ए दिल ऐसे अब तू शोर न कर
यहाँ और भी हैं कू-ए-दिलबर उस एक गली का ज़ोर न कर

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