Vidushi Malpani   (Vidushimalpani)
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Joined 5 February 2020


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12 JAN 2023 AT 1:14

मत पूछ किसी से
की तेरी खता क्या है
अगर तु नहीं जानता तेरी खता
तो तुझे फिर पता ही क्या है?
और लोगों का काम है खता बताना
बोलते है तो सुन ले,सुनने में गिला क्या है
और खुद को उठाना है तो कर के दिखा
ये बोल बोल कर बोलते रहने मे उम्दा क्या है?
और अब कहोगे की सुनने में गिला नहीं
पर सुनना क्यों है
कान कर लेगा बंद तो ज़ज्बा बनना कहा है
और छोड़ दूसरों को क्योंकि दूसरे हैं वो
तू ये बता तेरा अपना क्या है
अगर है तेरा अपना कुछ
तो तूने किया क्या है
और अगर है वो ख़फ़ा तुझसे
तो बता तेरी खता क्या है ?

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2 NOV 2022 AT 19:34

ये हृदय को छूती पवन
ये लालिमा भरा गगन
ये चिड़िया मस्त मलंग
ये इंद्र धनुष के सतरंगी से रंग
ये मैं ही तो हूँ....................
ये सतत वक्त चले
ये वृक्ष की छांव तले
ये जीव जंतु सभी पले
ये मर कर यहीं मिले
ये मैं ही तो हूँ.....................
ये आग में तपती
ये माटी में लिपटी
ये घाँस जो उगती
ये नदियाँ जो बहती
ये मैं ही तो हूँ.....................
ये चाँद और चाँदनी
ये राग और रागिनी
ये शेर और हिरनी
ये पत्तियों की फिरकनी
ये मैं ही तो हूँ................
ये काला गोरा रंग
ये सुंदर और बदरंग
ये ओंठो की लाली
ये जुल्फें काली काली
ये मैं ही तो हूँ...................
मैं हूँ माता प्रकृति
गढ़ी मैंने ही तेरी आकृति
मानव ही तो है
मेरी सबसे अनोखी कृति......

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31 OCT 2022 AT 12:44

शब्दाः बहु वदन्ति,
ते हसन्ति..
ते रोदन्ति,
ते मौनं कुर्वन्ति...
ते गीतानि गायन्ति,
ते क्रुद्धः भवति...
ततः मया सह स्मितं कुर्वन्ति..
गुप्तरूपेण स्वप्नेषु,
काव्यं रचयन्तु..
अहं न जानामि, अहं सर्वम् रात्रौ वचनानां कृते जागृति तिष्ठामि,
वा मम कृते सर्वे वचनानि रात्रौ जागृतं कुर्वन्ति...

words talk a lot,
They giggles sometimes...
and laughs Sometimes,
They do long talks Sometimes...
in cold nights,
they cry Sometimes...
They maintain silence sometimes,
They sing Sometimes...
They get angry Sometimes,
They smile Sometimes...
Secretly used to come in my dreams,
And unintentionally weave poems...
I don't know, I wake them up all night,
Or these words do not let me sleep...

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30 OCT 2022 AT 13:48

किताबों की दुनिया में,
पहुँच गया एक इंसान...
देखा हरियाली चारों ओर,
और एक फ़ूलों से लदा मैदान...
संगीत देता भंवरा और गाती चिड़िया,
संग गुनगुनाता आसमान..
सब कुछ बहुत सुन्दर,
खुशियों से भरा हुआ वो जहान...
पूछा उसने की क्यों है यह जगह इतनी सुन्दर,
जबाब मिला..क्योंकी यहाँ नहीं रहते हैं इंसान...

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21 OCT 2022 AT 12:56

कुछ नहीं हूँ मैं
सबकी अपनी-अपनी कहानी हूँ
सबकी अपनी-अपनी जुबानी हूँ
कभी सुख कभी दुख की परिभाषा हूँ
कभी कठिनाइयों में आशा हूँ
कभी सुख में मीठा बताशा हूँ
कभी यूहीं बेतहाशा हूँ
कभी हूँ आशिकी
कहीं हूँ नाराजगी
कहीं फ़ूलों सी ताजगी
कहीं कुछ ज्यादा ही कागजी
कभी हूँ मिलन
कभी हूँ हृदय टूटा सा
कहीं हूँ सफल
कहीं भाग्य रूठा सा
एक छोटी सी कलम से उकर आती हूँ
मैं हूँ कविता, अनकहा भी कह जाती हूँ

लेखिका एवं कॉपीराइट
विदुषी मालपानी "वीणा"
खण्डवा मध्यप्रदेश 🫶🏼

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13 OCT 2022 AT 17:39

काश...
वो पेड़ समेट सकता...

पतझड़ में झड़ चुके पत्तों को
आंधी में टूट चुकी टहनियों को
काटी गयी डालियों को
तोड़ कर फेंके गए फ़ूलों को
अपने पास उगी घास को

काश...
वो पेड़ बुला सकता वापस...

उड़ चुके पंछियों को
कोटर में रहने वाले उल्लू को
नीचे बिल में बसने वाले सर्प को
उन चींटियों को,तितलियों को, मधुमक्खियों को
उसकी छाँव में बैठती गायों को

काश...
वो पेड़ फिर से ला सकता...

डालियों पर झूलते बच्चों को
अपने खिलखिलाते परिवार को
दे सकता और आक्सीजन अपने मानव पुत्रों को
बचा सकता उन यादों को,उन लम्हों को
जो उसे सुकून से जीने की वजह देते थे

काश....

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13 OCT 2022 AT 17:37

*उनके लिए जो हैं आने वाले*

शायद कभी होते होंगे
पंख वृक्षों के भी
और उड़ जाते होंगे
वो भी आसमान में
ढूँढने उस गौरैया को
जो सौंप उसे जिम्मेदारी
अपने घोंसले की
कहीं उड़ चली
फिर देखा होगा उन्होंने
औरों को भी
उड़ कर जाते हुए
समझ गए वो फिर
की क्या है सबसे महत्वपूर्ण
सत्य प्रकृति का
कि जिसे आना होता है
वो आता है
जिसे जाना होता है
वो जाता है
कोई वापस आए
या लौटकर ना आए
तो भी डट कर
रहना है खड़े
उनके लिए जो हैं आने वाले
जो फिर सहारा लेंगे
और शायद फिर से
उड़ जायेगें
तब जमा लिए उन्होंने
अपने पैर पृथ्वी की गहराईयों में
और त्याग दिए पंख
सदा-सदा के लिए

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13 OCT 2022 AT 17:04

डग-मग डग-मग
डोले जीवन
इक पल झूमे
इक पल बिखरा मन

भागते रहते सरपट-सरपट
दो पल मिले तो जी लूँ जीवन
महके मन हरसिंगार सा हो
खिल-खिल जाए तब ये तन

डग-मग-डग-मग
डोले जीवन
इक पल झूमे
इक पल बिखरा मन

टप-टप गिरती इन बूंदों से
भीगा - भीगा ये तन-मन
माटी की सौंधी खुशबू से
महके सृष्टि का कण-कण

डग-मग-डग-मग
डोले जीवन
इक पल झूमे
इक पल बिखरा मन

मन मुंडेर पर सवाल हज़ारों
क्यों कभी साथ कभी अकेलापन
कभी सुख के बरसे बादल
कभी रात का कालापन

डग-मग-डग-मग
डोले जीवन
इक पल झूमे
इक पल बिखरा मन

कभी अच्छा कभी है बुरा
यही सृष्टि का अनवरत नियम
सुख-दुख तो लगा रहेगा
अच्छा रखिये बस अपना मन

डग-मग डग-मग
डोले जीवन
इक पल झूमे
इक पल बिखरा मन

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14 SEP 2022 AT 14:40

किसी बच्चे के हाथ लग जाती
अगर पृथ्वी उछलकर गेंद की तरह......

उसके छोटे - छोटे हाथों से
वो रंगीन क्रेयानों से
उसे भी रंग देता
घर की दीवारों के निचले हिस्सों की तरह......

लाल को पीला करता
या बैंगनी को लाल करता
हरे को रंग देता शायद नीला
तितलियों या इन्द्रधनुष की तरह......

या शायद वो इस गेंद पर
छापता अपने हाथो की नकल
छोटी - छोटी उंगलियों से वो
समेट लेता संसार खिलौनों की तरह...

वो भर देता उन रंगों को
जो सिर्फ उसके पास हैं
मासूमियत से रंग देता संसार अगर
तो पृथ्वी हो जाती स्वर्ग की तरह.....

उस दिन पृथ्वी चाँद से दिखाई देती
मासूम बच्चों के रंग-बिरंगे खुशियों के गुब्बारों की तरह....🎈

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24 AUG 2022 AT 20:38

कुछ मत कहो
बस बहने दो,
इस पावन पवन को
यूहीं उड़ने दो,
इस आजाद पतंग को
बजने दो
इस मधुर संगीत को
ढलने दो
इस लालिमा भरी शाम को
बस उगने दो
इस स्वेत चाँद को
मिलने दो
चाँद से तारों को
खेलने दो
इन शरारती बादलों को
झरने दो
यूहीं शब्दों के झरनों को
बुनने दो
कविताओं में इन शब्दों को
उतरने दो
हृदय की गहराई में इन पंक्तियों को
जागने दो
नयी उमंगों को, तरंगों को
बनने दो
इनसे नए स्वप्नों को
कुछ मत कहो
यूहीं अनन्त काल तक
बस चलने दो
इन महके लम्हों के सिलसिले को

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