Vidhi Dimri   (विधि)
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Romanticizing my life. Beginner but yes.
Joined 30 January 2020


Romanticizing my life. Beginner but yes.
Joined 30 January 2020
7 JAN 2022 AT 21:32

बचपन से आज तक बहुत कुछ बदल गया, लोग, उनका अपनापन, हालात और मैं ख़ुद।
कुछ बस वैसा ही है तो आप और मेरी ढेरों कहानियाँ सुनने वाला आपका मौन।
-शिवप्रिया, विधि।

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6 JAN 2022 AT 11:13

मैंने वेदना लिखी, तो वीरता भी।
अश्रु लिखे, तो खिलखिलाहट भी।
ज़ख्म लिखे, तो मरहम लगाने वाले हाथ भी।
अन्धकार लिखा, तो दिये का प्रकाश भी।
बिल्कुल वैसे जैसे अमावस लिखी, तो
अगली रात का चाँद भी।
रास्ते के पत्थर लिखे, तो आसपास के फूल भी।
दो कड़वी बातें लिखी, तो किसी अजनबी की मुस्कान भी।
हे ईश्वर, मैं थोड़ा और यूँ ही ठहर गयी,
तो बेउम्र बीमारियां खा जाएँगी मुझे
अब कुछ क्षण भर मुझे बस प्रेम लिखने दे।

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1 JAN 2022 AT 22:16

आज मन्दिर में मैं दो अलग लोगों से मिली
या यूँ कहूँ दो अलग नजरिये से।
दोनों ही मन्दिर के आराधक हैं,
एक, जिन्होंने नववर्ष की शुभकामनाएँ इसलिए नहीं ली क्योंकि यह हिन्दू कैलेंडर में मान्य नहीं।
और दूसरी, जिन्होंने साल शुरू होने की खुशी में मुझ अनजान, को भी एक बड़ी सी मुस्कान और आशीर्वाद दिया।
तथ्यों पर जाऊँ तो यहां कोई गलत नहीं है
और मन में बसे प्रेम की सुनूँ
और जो मैं सुनूँगी भी तो
वो बड़ी सी मुस्कान ढेरों में बाँटने का जी कर रहा है
उन ढेरों में से एक होंगे, पहले वाले आराधक।
वो भी दोनों नव वर्षों के दिन।

-विधि।

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23 DEC 2021 AT 19:47

कितना सरल होता न,
यदि हमारे शरीर के ही भाँति
दर्पण हमारी आत्मा का प्रतिबिंब भी दिखा पाता,
या थोड़ा गहरा, पर सच कहूँ तो,
यदि हममें साहस होता,
उस प्रतिबिंब का सामना करने का
अपनी आत्मा पर पडी चोटों को सहलाने का,
अपनी गलतियाँ स्वीकारने का,
अच्छे कर्मों को सराहने का,
चेतना की एक सीढ़ी से दूसरी सीढ़ी पर जाने का।
"तब शायद हम मुख के साथ-साथ आत्मा का श्रृंगार भी अवश्य करते"
'वैसे तो हर आत्मा जन्म के समय से ही परम है,
पर सामने दर्पण होता,
तो वह परमात्मा को कितनी असानी से देख पाती न।'

-विधि।

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22 DEC 2021 AT 22:01

मेरे जिस्म को नोचने में उन हाथों का भी हाथ है,
जिनमें कुछ मुझ जैसा ही खून बह रहा है,
तो रिश्तों को, खून के मिलते रंगों से मापना
तो मेरे अन्दर डरती सिसकती,
आठ साल की छोटी सी बच्ची ने कबका छोड़ दिया।

-अपने ज़ख्मो पर शब्दों का मरहम लगाती,
घायल विधि।

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22 DEC 2021 AT 14:22

अश्लीलता हमारी अपनी खोज है,
ईश्वर की नहीं,
अगर ईश्वर की होती,
तो वह कपड़े पहनाकर पैदा करता।

-ओशो।

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18 DEC 2021 AT 19:09

वक़्त-बेवक़्त इस संसार ने मुझसे मेरे प्रेम का सबब माँगा
प्रत्येक पहर मुझे, मेरे समर्पण को, कटघरे में विवस्त्र किया
बड़ी विचित्र बात है कि,वे मेरे लिबास पर दाग लगाने में व्यस्त थे
और मेरा वही अपराधी प्रेम, उनके ढोंगी चश्मों के दाग मिटाने में।

-मंदमुस्कान सहित,
  अपराधी विधि।

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15 DEC 2021 AT 12:07

मुझसे मेरी रात की चाँदनी छीनने वाले सपने, कब मेरी सुबह की रोशनी भी छीनने लगे एहसास ही नही हुआ,
पर अब जो हुआ है, तो एक वादा है ख़ुद से कि,
न अब मैं चाँदनी को छुपने दूँगी और न ही रोशनी को पीठ करने दूँगी।
फिर भी किसी दिन अगर मेरी हिम्मत मेरे दिमाग के सामने कमजोर पडती दिखे
तो एक दीया जलाउंगी, पर कुछ धुंधले प्रतिबिंबो को अपने जीवन में दोबारा कभी अंधकार नहीं करने दूँगी।।

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24 OCT 2021 AT 20:06

From the day I met you,
I was a little kinder,
more patient,
more willing to offer a smile,
I practiced gratitude ,
because,
I wanted to let
the universe know
how thankful I was,
for showing me
that true love exists.

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21 OCT 2021 AT 22:24

Do you know why am I the happiest child around you?
Because I get the parent in you, which my childhood never had!

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