Varsha Tripathi  
1.1k Followers · 147 Following

Joined 29 February 2020


Joined 29 February 2020
24 AUG 2023 AT 2:49

दीप्ति - मय करने धरा को
तिमिर हरने चल पड़े हो,
त्याग कर सर्वस्व अपना
मोम सा गलना पड़ेगा
दीप सा जलना पड़ेगा, दीप सा जलना पड़ेगा....
तुझको करने को जमींदोज़
हो प्रबल तूफ़ान कोई,
बिखरे हो तिनके सा फिर भी
खुद संभलना ही पड़ेगा
दीप सा जलना पड़ेगा, दीप सा जलना पड़ेगा...
चुभते कांटे चीर दें तन
या चुभे ताने मन ही मन,
भूल कर आक्षेप सारे
आगे बढ़ना ही पड़ेगा
दीप सा जलना पड़ेगा, दीप सा जलना पड़ेगा...
टूट जाएं हौसले या
खत्म हो अस्तित्व अपना,
अंकुरित हो बीज सा
फिर से निकलना ही पड़ेगा.....
दीप सा जलना पड़ेगा, दीप सा जलना पड़ेगा...
राह रोड़े लाख डाले
लाख मंजिल दूर हो ले
मात दे हर बात को
ख्वाबों को बुनना ही पड़ेगा
दीप सा जलना पड़ेगा, दीप सा जलना पड़ेगा....

-


24 AUG 2023 AT 1:31

वफ़ा निभती नहीं और बेवफाई भी नहीं करते
न ही मिलते हैं हमसे और जुदाई भी नहीं करते....
न जाने कौन से अंदाज से वो इश्क़ करते हैं
न ही अपना बनाते और रिहाई भी नहीं करते......

-


24 AUG 2023 AT 0:44

हम भारतीय हैं...
असफलताओं से निराश होकर
नहीं बैठते थक हार कर.....
हम ठोकरे खाते हैं, गिरते हैं
परंतु नहीं छोड़ते उम्मीद
कि सफल होंगे एक दिन......
अथक परिश्रम के बाद भी
कामयाबी न मिलने पर,
भले ही रो पड़ते हैं हम
लेकिन रोते हुए भी कमर कस लेते हैं
अगले सफर की.......
नई उम्मीद, नई आशा, नई ऊर्जा के साथ
हम जुटे रहते हैं चुपचाप....
अंतत: एक दिन दिखा देते हैं दुनिया को
कि हम सिर्फ पढ़ते नहीं इतिहास,
रचते भी हैं......
🇮🇳🇮🇳 #चंद्रयान 3 🇮🇳 🇮🇳

-


24 JUL 2023 AT 1:44

मानसिक दबाव, पीड़ा ,आक्रोश, भययुक्त जीवन, हर रोज़ हजारों यातनाओं का दर्द......

पुरुषों की परिभाषा में भले ही कहते हों इसे स्वतंत्रता..हम स्त्रियों की परिभाषा में बिल्कुल भी नहीं.....

-


6 MAR 2023 AT 2:02

जैसा चल रहा है...यदि चलता रहा वर्षों
यकीनन इक रोज़, मानव अस्तित्व पर उठ जाएगा प्रश्न चिन्ह....
जब भोर में क्षितिज पर उगता हुआ सूर्य,
विफल हो जायेगा हमारे भीतर नई उमंग पैदा करने में....
पास के दरख़्त से आती चिड़ियों की चहचहाहट
नहीं उत्पन्न कर पाएगी हमारे दिलों में कोई सुगबुगाहट....
निरंतर गिरते झरने, बहती हुई नदियां
नहीं सिखा पाएंगी हमें अविरलता....
तन कर खड़े पर्वत, पहाड़
नहीं दे पाएंगे हमें स्थिरता की शिक्षा...
दर्द से कराहता समाज
द्रवित नहीं कर पाएगा हमारा हृदय....
यकीनन उस रोज़
हम पूर्णतया बन चुके होंगे यंत्र....
यंत्रीकरण की इस प्रक्रिया के दोषी होंगे हम स्वयं.. क्यूंकि
इस से अधिक कौन धूमिल करेगा मनुष्य का अस्तित्व
कि हम चल पड़ें स्वयं
संभावनाओं से सीमितताओं की ओर....
उन्मुक्ति से सीमाओं की ओर.......
सहजता से जटिलताओं की ओर......
कोमलता से कठोरताओं की ओर.....
यकीनन इक रोज़ हम स्वयं संकट खड़ा कर देंगे स्वयं के अस्तित्व के लिए...

हमें इस प्रक्रिया को बाधित करना होगा
अन्यथा यदि कभी, हमारी आने वाली पीढ़ियां
थकहार कर निकल पड़ीं स्वयं की खोज में...
निश्चितता वो कोसेगी हमें...उनका यंत्रीकरण करने के लिए....

-


28 FEB 2023 AT 2:55

ख्यालों में रहती हूं मैं उस दुनियां के, जहां
सभी को लगाव रहे सबसे, बिलगाव नहीं....
इसलिए, मुझे कभी पसंद नहीं रहा
ये पतझड़ का मौसम....
क्यूंकि इसमें हर तरफ़ नज़र आता है बस अलगाव....
वृक्षों से बिलगते पत्ते,
हवाओं से विलगती नमी
कहानी लिख रहे होते हैं इस अलगाव की.....
इस प्रक्रिया में शायद,
प्रकृति गुजर रही होती है
अपने सबसे कठिन दौर से....
इसलिए ही शायद,वो हो जाती है बेजान
झलकता है उसका, रूखा सूखा सा मिजाज़
और अजीब सा खालीपन...

हालांकि,अपने इस उजड़े हुए दृश्य से
सिखा भी देना चाहती है वो हमे
कि अलगाव दु:खपूर्ण है.....

अपनी प्रकृति से, समाज से
परिवार से, मनुष्यता से, अलग होते मनुष्य
जाने कब समझेंगे इसे.....

-


30 JAN 2023 AT 0:46

भारत की मिली झुली संस्कृति में
कहां इनके पांव इतने गहरे हैं
ये सांप्रदायिक दंगे, हिंसा,फसाद सब
कुछ स्वार्थवादियों की वजह से ठहरे हैं....
स्व स्वार्थ और सत्ता के लिए
वो धर्म का जाल बिछाते है
और हम भी सीधे साधे भारतीय
उनके जाल में फंस जाते हैं.....
भड़काकर मजहबी भावनाएं
हमें आपस में लड़वाते है
जब देश जलने लगता है
तब यहां कूटनीतिक दांव पेच खेले जाते हैं.....
मृत्यु पर शोक प्रकट कर
"मृतक के परिवार को पांच लाख की मदद "कह, यहां मौत के भी हर्जाने चुकाए जाते हैं
और इस तरह मदद के नाम पर खरीदकर यहां वोट बैंक बनाए जाते है.....
ग़रीबी,भुखमरी से लोग भड़क न उठे
इसलिए देश में हिन्दू मुस्लिम खेल खिलाए जाते हैं....
इस से भी समस्याओं से ध्यान ना हटे तो
न्यूज़ पर पाकिस्तान के हालात दिखाए जाते हैं.....
नफ़रत की चिंगारी को हवा देकर
यहां अग्निशमन के यंत्र मंगाए जाते हैं....
भरकर दिलों में नफ़रतें
सांप्रदायिक सद्भावना के नारे लगाए जाते हैं.....

-


16 JAN 2023 AT 2:05

पृथ्वी के जैसे ये स्त्री भी न...
अपने अंदर अहसासों का असीमित उद्गार समेटे
सिर पर जिम्मेदारियों का बोझ लिए
दिन भर असंख्य प्रहारों को सहते,
कसकते, टूटते, कराहते हुए
घूमती रहती है दिन भर इधर से उधर,
अपने रिश्तों की धुरी पर.......
वो घूमते, चलते, फिरते छोड़ ही नहीं पाती ये धुरी
कि निर्मुक्त कर ले खुद को उन अनगिनत परेशानियों से
सैकड़ों यातनाओं, प्रहारों, पीड़ाओं से
सदियों से झेलती आ रही है जिसे.....

-


12 AUG 2022 AT 1:21

आप हमेशा याद आयेंगे बाबा जी
🤢🤢

-


7 AUG 2022 AT 2:01

पलकों से रिसते हुए आंसू
आखों के नीचे काले घेरे
उम्र से पहले ही
गालों पर पड़ी हुई झुर्रियां
स्वत: स्वीकार्य खामोशी
जताती नहीं है क्या
कि इतनी स्वतंत्रता होने के बाद भी
मिली है हर रोज़ मुझे
एक स्त्री होने की सजा.......

-


Fetching Varsha Tripathi Quotes