रात के मुसाफिर थे हम ! खो गये उजालो में,जिंदगी कितनी किताबी है ! बस बीती जा रही है सवालों में। -
रात के मुसाफिर थे हम ! खो गये उजालो में,जिंदगी कितनी किताबी है ! बस बीती जा रही है सवालों में।
-
अकेला मैं नहीं जिसके हिस्से में दर्द आया है,बहुत हैं यहां जिन्हें उनके करीबी ने रूलाया है। -
अकेला मैं नहीं जिसके हिस्से में दर्द आया है,बहुत हैं यहां जिन्हें उनके करीबी ने रूलाया है।
जरा बताओ ! आज कौन-सी नयी बात हुई ,कुछ खोये से हो लगता है आखिरी मुलाकात हुई । -
जरा बताओ ! आज कौन-सी नयी बात हुई ,कुछ खोये से हो लगता है आखिरी मुलाकात हुई ।
आज फिर दिल जा रहा था अपनी हदें लांघने,आज फिर लगे हम उसे अपनी सरहदों में बांधने। -
आज फिर दिल जा रहा था अपनी हदें लांघने,आज फिर लगे हम उसे अपनी सरहदों में बांधने।
दिल पर लगी तस्वीर मेरी अब उसने हटा दी है,खुद में मशरूफ कहुं या दुनिया में तन्हा पर इश्क ने मुझे यही सजा दी है ----------------------------------------------------------------------------- -
दिल पर लगी तस्वीर मेरी अब उसने हटा दी है,खुद में मशरूफ कहुं या दुनिया में तन्हा पर इश्क ने मुझे यही सजा दी है -----------------------------------------------------------------------------
मैं अपनी सुबह शाम यूंही गुजार लेता हूं ,हंसी का मुखौटा जो औढ़ा होता है महफिलों में उसे तन्हाई में उतार देता हूं ।--------------------------------------------------------------------------------- -
मैं अपनी सुबह शाम यूंही गुजार लेता हूं ,हंसी का मुखौटा जो औढ़ा होता है महफिलों में उसे तन्हाई में उतार देता हूं ।---------------------------------------------------------------------------------
तस्वीर तेरी दिल से हटाएं कैसे तू गैर है अब दिल को समझाएं कैसेयकीं हो नहीं रहा अब किसी बात पर तूझे भूलने के लिए दिल को मनाएं कैसे । -
तस्वीर तेरी दिल से हटाएं कैसे तू गैर है अब दिल को समझाएं कैसेयकीं हो नहीं रहा अब किसी बात पर तूझे भूलने के लिए दिल को मनाएं कैसे ।
लोग दाएं बाएं हमारे हजार रहते हैं हम ही जानते हैं कि हम दरिया-ए-गम के पार रहते हैं -
लोग दाएं बाएं हमारे हजार रहते हैं हम ही जानते हैं कि हम दरिया-ए-गम के पार रहते हैं
एक आस थी तेरा साथ पाने कीएक आस थी तुझे अपना बनाने की दिल राजी था तोड़ने को बंदिश जमाने की और तुझे जल्दी थी रकीब का हो जाने की । -
एक आस थी तेरा साथ पाने कीएक आस थी तुझे अपना बनाने की दिल राजी था तोड़ने को बंदिश जमाने की और तुझे जल्दी थी रकीब का हो जाने की ।
पता नहीं ज़माने में क्या ढूंढती फिरती हूं मैं,पुरानी किताबों में गुलाब की खुशबू लिए फिरती हूं मैं,वो जो आवारा कहते हैं ! उन्हें बता दीजिए जरा ,बस जरा सुकून पाने के लिए लिखती हूं मैं। -
पता नहीं ज़माने में क्या ढूंढती फिरती हूं मैं,पुरानी किताबों में गुलाब की खुशबू लिए फिरती हूं मैं,वो जो आवारा कहते हैं ! उन्हें बता दीजिए जरा ,बस जरा सुकून पाने के लिए लिखती हूं मैं।