Vaidehi Singh Rajpoot   (वैदेही💕)
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Joined 18 April 2021


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Joined 18 April 2021
35 MINUTES AGO

अपनी गैरत को नदामत में डुबो नही सकता
मैं मर्द हूँ ना साहब खुल के रो नही सकता

वो लगे है सौदेबाज़ी में जहाँ के साथ
वो मेरे अपने है उन्हें मैं खो नही सकता

दावा है किसी का सिर्फ मेरा होने का
मजबूर हु मै मगर उसका हो नहीं सकता

मेंरे इश्क में हक़ तो सिर्फ तेरा है हमदम
ख्वाबों को तेरे आखों में संजो नही सकता

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ज़िन्दगी वफादार है, बेवफा है सनम
दिल है बेकरार मेरा चश्म है पुरनम
तुम समाओ ना नज़रो में नूर बनकर
आज मेरी आँखों मे चुभ रहा है ग़म

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मौन अच्छा है,
परन्तु अन्याय हो तब नहीं

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YESTERDAY AT 12:36

जन्मदिन की हार्दिक शुभकामनायें
भाई साहब 🎂🎂🎂🎂💐💐💐

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YESTERDAY AT 12:02

मरनें की हालत में भी क्यों जीते है लोग
आखिर इतने समझौते क्यों करते हैं लोग

कौन अपना हैं कौन पराया पता नही
किरदार इतने अदा क्यो करते हैं लोग

बेबसी पर अपनी रो भी ना सके हम
हम पर इतना हँसा क्यो करते है लोग

खुश हाल रखा हमनें सभी को वैदेही
गिला हमसे ही फिर क्यो करते हैं लोग

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YESTERDAY AT 11:55

😊😊

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YESTERDAY AT 8:15

खत्म होने जैसा कुछ नहीं होता जिंदगी में....
हमेशा एक नई सुबह आपका इंतज़ार करती है

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26 APR AT 23:22

उम्र तन्हा ही गुज़ार दी अपनी सारी
राज़ हमने ये किसी को बताया नही
जिस चाँद पर हमने फ़साने लिखें
चाँद वो हमें कभी नज़र आया नहीं

दूर ही दूर तड़पते रहे उसके बिना
करीब वो मेरे कभी भी आया नही
नायाब था वो आसमा का अपने
रिश्ता मुझसे उसने निभाया नही

छुप जाता है ऐसे बादलो में अपने
जैसे नज़र वो मुझको आया नही
मगरूर है वो खुद पर ही वैदेही
दाग अपना उसे नज़र आया नही

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26 APR AT 16:39

हवा जो चूम चली जाए है
अधरों पे हंसी बन छाय है
नींद का झोंका आ जाए है
ख़्वाबों में आप ही आए हैं

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26 APR AT 16:31

दिन भर तों डूबे रहें हम , जग की दुनियांदारी में
जब शाम हुई दिन ढला , तुम याद बहुत आए

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