Va$u(वृष्टि) T¡w@r¡   (Va$u 📝)
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Joined 12 April 2020


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Joined 12 April 2020

सुनो न...
साथ दे पाओगे तुम..?

यदि किसी ने दूरियों के बीज बो दिए
तो क्या उन दूरियो को कम कर पाओगे तुम..?

जान हो तुम मेरी
क्या सबके सामने इतना कह पाओगे तुम..?

बोल कर बयां नहीं कर पाते हम
क्या फिर भी खामोशियां सुन पाओगे तुम..?

हां माना बोर हो जाते हो
पर मेरे बगैर जिन्दगी जी पाओगे तुम..?

शक्ल सूरत पर मरने वाली इस दुनिया में
क्या दुनिया को मेरे होकर दिखा पाओगे तुम..?
❤️❤️❤️

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सुनो न...
हमने तौल दिया खुद को जो उसका दाम अच्छा लगा..
कुछ हुई यूं गिरफ़्तार इश्क़ में के बेवफ़ा इल्ज़ाम भी अच्छा लगा ..!
❤️❤️❤️

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....

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सुनो न...

मैं ज़िंदगी को अपनी और ग़म-ए ख़्वार करके देखती हूं
आज की शाम ख़ुद को उनके नाम करके देखती हूं..

वो जो कहते हैं अज़ब मोहब्बत नहीं करते किसी से
बे-ग़ैरत उनसे ही इश्क़ ए इज़हार करके देखती हूं..

फक़त मिलने की आरज़ू है और कुछ भी नहीं
आशियाँ से आसमां तक का सफ़र करके देखती हूं..

ख्व़ाब ओ ख़्याल में बस तसव्वुर है उनका ही
क्यों न उन्हें अपना हमसफ़र करके देखती हूं..
❤️❤️❤️

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सुनो न...
कोशिश है तेरे क़ाबिल बनने की
और इक दिन मेरे अंदर भी वो काबिलीयत होगी..
करूंगी इबादत कुछ खास
तब मेरी हर मन्नत दुवाओं में क़बूल होगी..
भूलकर गिले शिकवे फिर हम मिलेंगे
और हमारे मोहब्बत की इक नई शुरुआत होगी..
💓💓💓

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सुनो न...
ज़िक्र करते हैं तेरा इस क़दर अल्फाज़–ए–महताब..
की दुनियां शायरी को मिरी जुनूँ–ए–इश्क़ कहती है
❤️❤️❤️

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सुनो न..
जब से रंगी है मेरी रूह तेरे इश्क़ में
शाम-ओ-सहर और निखरने लगी हूं..

बिखर गई थी लिपटकर जो तेरे आगो़श में
सुब्ह-दम जुल्फ़ों संग संवरने लगी हूं..

होठों की तिश्नगी को होंठो से लगाकर
अहद-ए-शबाब में उतरने लगी हूं..

लफ्ज़ों में बयां अब करूं भी तो क्या
तुमसे मोहब्बत बेशुमार मैं करने लगी हूं..
❤️❤️❤️

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सुनो न..
हो इजाज़त इतनी ही गर आज़ मुझको
हमीं उनकी आंखों के कम–नसीब वो ख़्वाब चाहते हैं..

ख़ैर ओ ख़लिश इतनी सी है दिल में
चश्म-ओ-चिराग हम वो महताब चाहते हैं..

वफाओं से बसर कर शिद्दत–ए–मोहब्बत का सफ़र
मोहब्बत में दिल का इज़्तिराब चाहते हैं..

ऐ ख़ुदा और कितना करोगे जब्र हम पर
अब कुछ देर जो छाया दे वो अस्बाब चाहते हैं..

मत पूछो हमसे ओ मुर्शीद कि हम क्या चाहते हैं
मातम–ए–इश्क़ में हर बार अज़ाब ही अज़ाब चाहते हैं..
❤️❤️❤️

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