क्या बुरा है क्या भला मुझे कुछ पता नहीं,तुमसे दिल लगा बैठे तो इसमें कोई ख़ता नहींl तुमसे दिल की बात करें भी तो करें कैसे,तू मुझसे मतलब के सिवा और बात करता नहींl होता है तू मेरे रू-ब-रू हर रोज़ मगर,तू मुझसे मेरा हाल एक बार क्यूँ पूछता नहींl यूँ बैठ जाना तेरा मेरे बाजू में आ कर,चाहूँ जितना मगर वो लम्हा वहाँ ठहरता नहींl जो सीने में है वो राज़ बताना चहता हूँ,तुझे पड़ी होगी ज़माने की, मैं किसी से डरता नहींI मुझे बस परवाह है तो तेरी वरना मेरा क्या,तेरे ख़ातिर मैं सर-ए-'आम तेरा चर्चा करता नहींl -
क्या बुरा है क्या भला मुझे कुछ पता नहीं,तुमसे दिल लगा बैठे तो इसमें कोई ख़ता नहींl तुमसे दिल की बात करें भी तो करें कैसे,तू मुझसे मतलब के सिवा और बात करता नहींl होता है तू मेरे रू-ब-रू हर रोज़ मगर,तू मुझसे मेरा हाल एक बार क्यूँ पूछता नहींl यूँ बैठ जाना तेरा मेरे बाजू में आ कर,चाहूँ जितना मगर वो लम्हा वहाँ ठहरता नहींl जो सीने में है वो राज़ बताना चहता हूँ,तुझे पड़ी होगी ज़माने की, मैं किसी से डरता नहींI मुझे बस परवाह है तो तेरी वरना मेरा क्या,तेरे ख़ातिर मैं सर-ए-'आम तेरा चर्चा करता नहींl
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एक काम बाकी था, कर आया हूँ मैं,उनके दिल से भी उतर आया हूँ मैं... -
एक काम बाकी था, कर आया हूँ मैं,उनके दिल से भी उतर आया हूँ मैं...
कुछ ख़्वाब ख़ुद से टूटे, कुछ तोड़ दिए गए,सबने किया इस्ते'माल हमरा फिर 'यूँ ही' हम छोड़ दिए गएI -
कुछ ख़्वाब ख़ुद से टूटे, कुछ तोड़ दिए गए,सबने किया इस्ते'माल हमरा फिर 'यूँ ही' हम छोड़ दिए गएI
अब तो हमने अपने ज़ख़्मों को भी जैसे चार-बंद कर लिया,डर के उनकी रुसवाई से अश्कों को आँखों में पाबंद कर लियाl था वो कोई ज़माना की हम भी अल्ल्हड़ हुआ करते थे, लेकिन, खा-खा कर चोट उनके तंज़ के हमने खुद को अक़्ल-मंद कर लियाl होती है ज़िल्लत आपको हमारे वुजूद भर से आज-कल, उफ़,जाने किस बुनियाद आपने आख़िर हम जैसे को पसंद कर लियाl आपकी बे-रुख़ी को बे-वफ़ाई में बदलता देख ना सकते थे पर,घूँट लहू का भर ही सही, खुद को इसके लिए भी रज़ामंद कर लियाlझूम रहें हैं हम मौज-ए-ग़म-ए-हिज्र में बराबर साक़ी,वो पूछे तो कहना कि हमने मैख़ाने में खुदको नज़र-बंद कर लियाll -
अब तो हमने अपने ज़ख़्मों को भी जैसे चार-बंद कर लिया,डर के उनकी रुसवाई से अश्कों को आँखों में पाबंद कर लियाl था वो कोई ज़माना की हम भी अल्ल्हड़ हुआ करते थे, लेकिन, खा-खा कर चोट उनके तंज़ के हमने खुद को अक़्ल-मंद कर लियाl होती है ज़िल्लत आपको हमारे वुजूद भर से आज-कल, उफ़,जाने किस बुनियाद आपने आख़िर हम जैसे को पसंद कर लियाl आपकी बे-रुख़ी को बे-वफ़ाई में बदलता देख ना सकते थे पर,घूँट लहू का भर ही सही, खुद को इसके लिए भी रज़ामंद कर लियाlझूम रहें हैं हम मौज-ए-ग़म-ए-हिज्र में बराबर साक़ी,वो पूछे तो कहना कि हमने मैख़ाने में खुदको नज़र-बंद कर लियाll
यहाँ किस-किस का ए'तिबार करूँ, सभी तो अपने हैं,वक़्त की बिसात पर दौड़ते- भागते हम जैसे कोई मोहरे हैंl मेरा नसीब की, मैं अपनी हीं कहानी में बस किरदार हूँ,तुम देखते हो जो अपनी आँखों से वो मेरे सपने हैंl तू पूछ्ता मेरा हाल भी तो क्या बताता मैं भला,कोई एक हो तो दिखाऊँ, अभी कई ज़ख्म और भरने हैंl मैं इस टूटे दिल से भला कैसे तुम्हारा शुक्रिया करूँ,तेरे पीछे हुआ जो हाल मेरा की सब मुझपे हँसते हैंll -
यहाँ किस-किस का ए'तिबार करूँ, सभी तो अपने हैं,वक़्त की बिसात पर दौड़ते- भागते हम जैसे कोई मोहरे हैंl मेरा नसीब की, मैं अपनी हीं कहानी में बस किरदार हूँ,तुम देखते हो जो अपनी आँखों से वो मेरे सपने हैंl तू पूछ्ता मेरा हाल भी तो क्या बताता मैं भला,कोई एक हो तो दिखाऊँ, अभी कई ज़ख्म और भरने हैंl मैं इस टूटे दिल से भला कैसे तुम्हारा शुक्रिया करूँ,तेरे पीछे हुआ जो हाल मेरा की सब मुझपे हँसते हैंll
मैं वो कर गुज़रूंगा की एक मिसाल बन जाऊँगा,सब ढूंढ़ते हैं जिसका जवाब वो सवाल बन जाऊँगाl ढकेल दिया मुझे सियाह-तन्हा राहों पर कि मैं डर जाऊँगा,ऐ ज़माने सुन, मैं चिंगारी था अब मशाल बन जाऊँगाl है वहम उन्हें की मजबूर की बिसात ही क्या है,उनके ज़ुल्मों का सबब, मैं उनके लिए जलाल बन जाऊँगाl गुलों को सुर्ख़ किया अपने लहू से सींच कर,जो कुचला भी गया तो क्या, मैं गुलाल बन जाऊँगाl करते हैं नज़र-अंदाज़ वो हमारी हस्ती को बार-बार, तो क्या,अपने अल्फ़ाज़ों से मैं एक-इंक़िलाब एक-ख़याल बन जाऊँगाll -
मैं वो कर गुज़रूंगा की एक मिसाल बन जाऊँगा,सब ढूंढ़ते हैं जिसका जवाब वो सवाल बन जाऊँगाl ढकेल दिया मुझे सियाह-तन्हा राहों पर कि मैं डर जाऊँगा,ऐ ज़माने सुन, मैं चिंगारी था अब मशाल बन जाऊँगाl है वहम उन्हें की मजबूर की बिसात ही क्या है,उनके ज़ुल्मों का सबब, मैं उनके लिए जलाल बन जाऊँगाl गुलों को सुर्ख़ किया अपने लहू से सींच कर,जो कुचला भी गया तो क्या, मैं गुलाल बन जाऊँगाl करते हैं नज़र-अंदाज़ वो हमारी हस्ती को बार-बार, तो क्या,अपने अल्फ़ाज़ों से मैं एक-इंक़िलाब एक-ख़याल बन जाऊँगाll
है हासिल उसे ये ज़माना जिसे तू मिल गया है,अभी बहुत कुछ है जाना, अभी सिर्फ़ दिल गया हैl होती नहीं क्या सज़ा इजलास-ए-आशिक़ी में ख़ून की किसिको,मेरे अरमानो को कुचलता अभी यहाँ से मेरा क़ातिल गया हैl भला हिज्र के बाद किसी का आख़िर क्या गया है,तेरा तो पता नहीं, मेरा हर लम्हा बड़ा मुश्किल गया हैl था तेरे शहर में एक मकान जिसका भी कभी,तेरे फ़िराक़-ए-इश्क़ में वो दर-ब-दर हो मुंतकिल गया हैll -
है हासिल उसे ये ज़माना जिसे तू मिल गया है,अभी बहुत कुछ है जाना, अभी सिर्फ़ दिल गया हैl होती नहीं क्या सज़ा इजलास-ए-आशिक़ी में ख़ून की किसिको,मेरे अरमानो को कुचलता अभी यहाँ से मेरा क़ातिल गया हैl भला हिज्र के बाद किसी का आख़िर क्या गया है,तेरा तो पता नहीं, मेरा हर लम्हा बड़ा मुश्किल गया हैl था तेरे शहर में एक मकान जिसका भी कभी,तेरे फ़िराक़-ए-इश्क़ में वो दर-ब-दर हो मुंतकिल गया हैll
किसी दरख़्त से लटके अकेले पत्ते के जैसा हूँ मैं, मुसलसल आँधियों में जूझती हुई लौ-सा हूँ मैंl है सब यहाँ, पर मेरा अपना यहाँ कुछ भी नहीं,अपने ही घर में कुछ खोया-कुछ गुम-शुदा-सा हूँ मैंl मेरे तौर-तरीकों से बड़े परेशान रहते सब आज-कल,कहते हैं लोग कि कुछ ऐसा - कुछ वैसा हूँ मैंl मेरी कामयाबी की देते हैं यहाँ लोग मिसालें बहुत, लेकिनअपनी ही खामियों का गड़ा एक फ़साना-सा हूँ मैंl ज़माना हुआ, नहीं पूछा किसीने मुझसे हाल तक मेरा,सिर्फ एक 'माँ' ही हर रोज़ पूछती है की 'कैसा हूँ मैं'l -
किसी दरख़्त से लटके अकेले पत्ते के जैसा हूँ मैं, मुसलसल आँधियों में जूझती हुई लौ-सा हूँ मैंl है सब यहाँ, पर मेरा अपना यहाँ कुछ भी नहीं,अपने ही घर में कुछ खोया-कुछ गुम-शुदा-सा हूँ मैंl मेरे तौर-तरीकों से बड़े परेशान रहते सब आज-कल,कहते हैं लोग कि कुछ ऐसा - कुछ वैसा हूँ मैंl मेरी कामयाबी की देते हैं यहाँ लोग मिसालें बहुत, लेकिनअपनी ही खामियों का गड़ा एक फ़साना-सा हूँ मैंl ज़माना हुआ, नहीं पूछा किसीने मुझसे हाल तक मेरा,सिर्फ एक 'माँ' ही हर रोज़ पूछती है की 'कैसा हूँ मैं'l
आज फिर एक और अरमान को मैंने दफ़ना ही दिया, दिल को मैंने अपने, आख़िर क़ब्रिस्तान बना ही दिया... -
आज फिर एक और अरमान को मैंने दफ़ना ही दिया, दिल को मैंने अपने, आख़िर क़ब्रिस्तान बना ही दिया...
निकला जो तेरी ख़यालों की गली तो निकलता चला गया,मैं तेरी आग़ोश की गरमाहट में पिघलता चला गयाl एक नशे सी हो तुम, किसी ख़ुमार में हूँ मैं,तेरे इश्क़ का मय मैं कुछ इस तरह निगलता चला गयाl है मालूम मुझे कि राह-ऐ-इश्क़ नहीं आसान बहुत,जानते-बुझते भी तेरे दिल की गहराईयों में फिसलता चला गयाl मेरी कैफ़ियत में ही नहीं इज़हार-ऐ-अरमान-ऐ दिल,जाने क्यों तुझसे बातों-बातों में सब उगलता चला गयाl उस रात जब छत पर आया तू मेरे दीदार के लिए,तुझे देख, महताब भी शर्म से पूरी रात जलता चला गयाll -
निकला जो तेरी ख़यालों की गली तो निकलता चला गया,मैं तेरी आग़ोश की गरमाहट में पिघलता चला गयाl एक नशे सी हो तुम, किसी ख़ुमार में हूँ मैं,तेरे इश्क़ का मय मैं कुछ इस तरह निगलता चला गयाl है मालूम मुझे कि राह-ऐ-इश्क़ नहीं आसान बहुत,जानते-बुझते भी तेरे दिल की गहराईयों में फिसलता चला गयाl मेरी कैफ़ियत में ही नहीं इज़हार-ऐ-अरमान-ऐ दिल,जाने क्यों तुझसे बातों-बातों में सब उगलता चला गयाl उस रात जब छत पर आया तू मेरे दीदार के लिए,तुझे देख, महताब भी शर्म से पूरी रात जलता चला गयाll