वो चिड़िया भी रोज़ की तरह चहक रही है
वो कागा भी वैसे ही जगा रहा है
रोज़ जैसा ही तो सूरज निकला है
वैसी ही हवा बह रही है।
नादान है वो चिड़िया
उस घर में लोग देख कर
उनको महकाने पहुँच गयी
उसे क्या पता उस घर की तो
सारी ख़ुशबू ही अब चली गयी।
ख़बर जो आयी जाने की
कोई उस कागे को भी बता दो,
वो रोज़ जगाने जिसे आया है
वो नींद शायद अब खुलेगी नहीं।
बीमारी का पता सूरज को तो नहीं था
जो होता तो बादल बरसा देता वो भी आज
हवा तो बहुत पसंद थी उनको
शायद तभी समझ नहीं पा रही ये एकांत।
वो चिड़िया रोज़ की तरह ही तो चहक रही है।
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