जब...सब खेल खत्म होगा...
जब...किसी बंधन में ना तुम होगे...
जब...मैं भी पाबंदियों से आजाद रहूंगी...
जब...एक दूसरे को अजनबी की तरह देखेंगे....
तब...भी शायद मैं तुम्हें पहचान लूंगी...
क्योंकि...तुम मेरी जिंदगी में एक उम्र तक...
सुखी मिट्टी...पर बारिश की तरह महके हो...
इसलिए शायद जब सब खत्म होगा...
तब भी कहीं मेरी रूह में बचा होगा...
तुम्हारा... सोंधापन...!!
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