मैं पत्थर और वो पानी थी,
उसने मुझे आकार दिया।
मेरे नीरस जीवन को,
उसने ही साकार किया।
आदमी से इंसान बनाकर,
उसने मुझपर उपकार किया।
मेरी हजार गलतियों के बाद भी,
उसने मुझसे प्यार किया।
मैं पागल समझ ना पाया,
उसके दिल पर वार किया।
उसकी गलतियां गिनवा कर,
अपनी शर्तों पर प्यार किया।
वो छोड़ गई तब जाना,
मैंने जो किया निराधार किया।
इतने प्यारे रिश्ते को संभाल न पाया,
अपने हाथों से अपना घर ख़्वार किया।
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