Tushar Narang ਤੁਸ਼ਾਰ ਨਾਰੰਗ   (✍ नज़्म - ए - गज़ल,तुषार)
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Joined 5 March 2019


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नाम तलक न हटता था कभी इक - दूजे की जुबां से
रात के दूजे पहर से तीसरे पहर होने तक,
आज उसकी रूह से निकले मुझे सदियां बीतने को आई...!!— % &

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उसकी ख़ामोशी मुझे अब दर्द देने लगी है,
मुझे उसकी ख़ैर - ओ - खबर बतलाओ कोई...!
उसे कहना कि आज भी तन्हा है तुषार तेरे बिना,
उसके दर पर ले जाकर मुझे उसके सीने से लगवाओ कोई...!!

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चुननी होगी तुम्हें वो राह जिसकी डगर नही होगी आसान,
चलना है तुम्हें उस पगडंडी, चली है जिस पर अभी तक कुछ ही लड़कियां...!

अभी रखा है कदम तुमने परिपक्व उमर की दहलीज पर,
अभी देखी है तुमने गलियां अपने गांव की,
अभी तुम्हारे पंखों को ये खुला आसमां नापना बाकि है...!!

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लिख दूं गर्माहट से लबरेज़ एहसासों को तेरे बदन के हर हिस्से पर,

सर्द मौसम की फिज़ा बदलना आदत अच्छी नहीं...!!

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एक मैं थी और बस नज़दीक थीं खामोशियां,
फिर सदाएं कौन - सी,जगाती रही रात भर
---परस्तिश

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उसकी क़ातिल नशीली आंखों का मैं काजल बनना चाहूं,
उसके गुलाब सी रंगत लिए लबों पर मैं हंसी बन ठहर जाना चाहूं,

हां,किसी रोज़ उसके मखमली गाल पर बाईं तरफ़ वाला काला तिल हो जाऊं !!

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समीर बाबू...,इस आवाज ने मुझे वर्तमान में ला दिया तो देखा डाकिया अंकल गेट पर खड़े मंद - मंद मुस्कुराते हुए अपने डाक के बंडल से बेहद आकर्षक और सुनहरी डोर से बड़े सलीके से बांधा गया एक पत्र निकाल कर मेरे हाथों में पकड़ा कर नव वर्ष की शुभकामनाओं का दुआ सलाम कर अगले खत को उसकी मंजिल तक पहुंचाने के लिए चल दिए !
और मैं...,हतप्रद खड़ा उस पत्र को देख उसमे से आती अल्हड़पन की भीनी सी सुगंध को महसूस कर इस डाक के आने से पहले वाले के ख्यालों में फिर यूं मग्न हुआ के जैसे मुझे ज्ञात हो कि साल 2022 के इस पहले खत में क्या लिखा है !

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उसे मालूम था के उसकी बातों में सुकून ढूंढा करता था मैं,
मांग कर हर रोज़ उससे तस्वीरें उसकी,
फिर रात भर उन तस्वीरों से बातें किया करता था मैं...!

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वो जो उस रोज़ मुझसे बिछड़ी वो कौन थी,

ये जो हर रोज मेरे होंठो 🚬से लग रही है

गर कमबख्त ये तेरी यादें है 😀

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मेरे नसीब की बारिशें किसी दूजे की छत पर बरस गई,

फिर भी महबूब से तुषार तेरी रुसवाई ना हुई...!!

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